गुनाहो का देवता | Gunahon Ka Devata
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज़ :
10.24 MB
कुल पृष्ठ :
389
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
धर्मवीर भारती - Dharmvir Bharati
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लक्ष्मीचन्द्र जैन - Laxmichandra jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“ससमप्त गये, अब तुम सोच रहे होगे कि इसी बहाने सुधा तुम्हें चाय
सी पिला देगी । सो मेरा काम मही है जो मैं चाय पिलाऊँ । पापा का
काम है यह । चलो घाओ !”'
चस्दर जाकर भीतर बैठ गया और कितावें उठा कर देखने लगा--
“अरे चारो कविता की कितारवें उठा लायी--समझ में आयेगी तुम्हारे ?
पयो सुधा ?””
“नहीं !” चिढाते हुए सुधा वोली--“'तुम कहो तुम्हें समझा दें ।
इकनॉमिव्स पढने चाले क्या जानें साहित्य 7”
“अरे मुकर्जी रोड ले चलो ड्राइवर 1” चन्दर वोला--'“इघर कहाँ
चल रहे हो ।”
“नही, पहले घर चलो !” सुधा वोली--''चाय पी लो तब जाना !””
“नही, मैं चाय नहीं पिऊेंगा !” चन्दर वोला 1
“चाय नही पिऊेंगा वाह ! वाह !” सुधा की हंसी में दुधघिया बचपन
छलक उठा-“मुंद तो सूख कर सोभी हो रहा हैं, चाय नहीं पियेंगे ।””
देंगला आया तो सुधा ने महराजिन से चाय वनाने के लिए कहा और
चन्दर को स्टडी रूम में विठा कर प्याछे निकालने के लिए चल दी ।
वेते तो यह घर, यह परिवार चन्द्र कपूर का अपना हो चुका था, जब से
वह अपनी माँ से घगड कर प्रयाग भाग आया था पटने के छिए, यहाँ
आ कर वी० ए० में भर्ती हुमा था मौर कम खर्च के खयाल से चौक में
एक कमरा लेकर रहता था, तभी से डॉक्टर शुवला उस के सीनियर
टीचर थे लौर उस की परिस्थितियों से अवगत थे । चन्दर की मेंगरेज़ी
शुनाह डे डे
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