पाबू प्रकास भाग - १ | Pabu Parkash Vol-i

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pabu Parkash Vol-i by नारायण सिंह भाटी - Narayan Singh Bhatiमोदी जी आशिया - Modi Ji Ashiya

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

No Information available about नारायणसिंह भाटी - Narayan Singh Bhati

Add Infomation AboutNarayan Singh Bhati

मोदी जी आशिया - Modi Ji Ashiya

No Information available about मोदी जी आशिया - Modi Ji Ashiya

Add Infomation AboutModi Ji Ashiya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( ए ) 'पाबु प्रकास' में वर्णित चरित्र 'पादू प्रकास' का प्रमुख नायक पावू राठौड़ है । वह एक धीरोदात्त श्रौर ऐतिहासिक नायक है । उसमें वीरता, वचन-बद्धता, नेतृत्व, उदारता श्रादि ऐसे गुण हैं जो न केवल उसे एक महान व्यक्ति के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं श्रपितु उसे एक लोकादर्श के रूप मों भी स्थापित करते हैं । इसका प्रत्यक्ष प्रमाण यह है कि पादू लोक-देवता के रूप में प्रतिष्ठित है और उच्च समाज से लेकर निम्न बगें तक का उसके प्रति सहज सम्मान भाव है । पावू का चरित्र उस युग की घरोहर है जव यहां सांस्कृतिक उथल-पुथल मची हुई थी श्रौर इस संक्रांति-काल में प्राचीन मूल्यों के सार तत्त्व के रूप में कुछ ऐसे नए मुल्यों का सृजन करने वाले लोगों की श्रावश्यकता थी जो समाज के आत्म - वल झ्रौर सस्कृति को श्रक्षुण्य रख सकें ।. युगों-युगों के लम्बे संघर्प में निम्नस्तरीय जातियें वड़ा संकटपूर्ण व कष्टप्रद जीवन व्यतीत कर रही थीं । क्षत्रिय आरादि लड़ाकू कौमों के कुटुम्ब जहां श्रपने राज्यों की स्थापना करने में व्यस्त थे वहां हर परिस्थिति में वणिक समाज श्रपने लाभ की श्रोर ही दृष्टि लगाए बैठा था श्रौर किसी प्रकार के जोखिम का भागीदार बनने से कतराता था, वहां ब्राह्मण-समाज तटस्थ होकर केवल, कम-काण्ड के जरिये उच्च वर्ग की श्रद्धा का भाजन बने रहने में श्रपनी होशियारी समभ्ता था श्रौर शुद्र लोगों की उसे कत्तई परवाह नहीं थी । वे क्षत्रियों को समय-समय पर बस यह याद दिला देते थे कि वे गौ-ब्राह्मण प्रतिपालक हैं श्रौर, ब्राह्मणों की रक्षा करना न केवल उनका कर्तव्य है अ्रपितु पुण्य का भी मा है । वे सनातन धर्म की उदात्त शिक्षा देने में अब सक्षम नहीं रह गए थे परंतु मन्दिरों श्रौर मठों में ्रपना एकाधिपत्य स्थापित कर सामन्तों का सा जीवन व्यत्तीत करने की श्रोर प्रवृत्त हो गए थे । बयों कि उनकी जागोर (डोली) थी श्रौर श्रपनी प्रबंध - व्यवस्था भी थी ।. ऐसी स्थित्ति सों धर्म ग्रौर संस्कृति के अ्रत्यन्त संकु चत दायरे में पुरा समाज एक होते भी झलग-थलग पड़ने लग गया था श्रौर निम्न वर्ग के प्रति सदुभाव तथा उनकी कठिनाइयों से उन्हें उवारने की श्रोर समाज का उच्च वर्ग कोई ध्यान नहीं दे रहा था जिससे उच्च चर्ग को जो सहयोग पिछड़ी हुई जातियों से पहले प्राप्त हेता था वह भी कम होता जा रहा था । ऐसी स्थिति में इस पिछड़े वर्ग को समाज का एक श्रभिन्त अंग बनाने और उनमें शत्म- विश्वास जागय्रत करने का कार्य पायू जैसे पुरुषों ने किया, इसीलिए उनके चरित्र की विशिष्ट स्थापना लोक-मानस में हुई । उन दो सौ वर्षों के का लगोंन केवल पादूश्रपितु अ्रन्य लोकनोयकों की भी श्रण्तारणा हुई जिनमें रामदेव, हड़यू, गोगा श्रौर मेहाजी का भी उत्लेखनीय स्थान है । यह प्राचीन दोहा श्राज भी इस वात की साक्षी देता है :-- “'पावू हड़वू रामदेव मांगठछिया मेहा | पांचू पीर पधारज्यो गोगादे जेहा ।।” कहने का तात्पयं यह है फि पादू जैसे चरिन्न की श्रवतारणा समाज में कोई झाकस्मिक घटना नहीं थी, वह उसे काल की एक ऐसी श्रावश्यकता थी जिसकी पुति पावू




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now