गीता का आरम्भ | Gita Ka Aarambh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ थ श्रीमगवा नुवाच कुतस्त्वा कर्मलमिदं विषमे सप्ठुपस्थितम्‌ । अनाथ जुष्टमस्वग्ये मकी तिंकरम जुंन ॥र१॥। क्ठेब्य॑ मा से गमः पाथे नेतत्वय्युपपद्यते । शुद्ें हृदयदौबल्य॑ त्यक्त्वोचिष्ठ॒ परंतप (! ३ ॥ अजुन उभ्च कथे भीष्ममदं संख्ये द्रोगं च. मधुप्दन । इपुभि। प्रति योत्स्यामि प्जाइविरिश्दुन ॥ ४ ॥ गुरूनदत्वा दि... महालुभावान्‌ श्रेयों भोक्तुं भेक्ष्यमपीह लोके । हत्वाथंकामां स्तु गुरूनिदेव सुज्लोय भोगान्रुधिस्दिग्धातू ॥ ५ ॥ न चेतट्रि। कतरननों गरीयों यद्दा जयेम यदि वा नो जयेयु । यानेव हत्वा न. जिजीविषाम- स्ते5वस्थिता। प्रप्ुखे धातराष्ट्री: ॥ 5 ॥| का्पण्यदोपोपह तस्व भाव: पृच्छामि त्वां धर्मसं पट चेताः यच्छय। स्थान्निश्विते ब्रूह्ि तन्मे _... शिष्यस्तेश्द॑ शाधि मां त्वां प्रपन्नमू ॥ ७ ॥ न हि प्रपस्यामि ममापतुद्यादू '..... यच्छोकमुच्छोषगमिन्द्रियागामू ।




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