राजस्थानी - वीर - गीत - संग्रह भाग - २ | Rajasthani-veer-geet-sangrah Part-ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13.35 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)राजस्थानी वीरगीत-संग्रह
' सोग २
१. गीत ठांकर सुरतसिहू चहुवांण रो
'. तैडा जोंवसी रे खद श्राज.तमासो, पैडां रोप खड़ा जुद्ध पर्गा ।
: « भ्रेंडा . बोलणहार .श्रनस्मी,,. बेंडा जाग ज्रम्बागठ बग्गा ॥१॥॥
भालां कर अ्चलला भारथ, समकां बागी सोक सरग्गां।
: . फक्रीक ऊडांण दिये रण भक्ाला, काछा बावछ खाग करग्गां 11२॥
राई फौज चाल तो ऊपर, रे.जसबोल सबोछ रहलला ।
की साहे दढां मछरीक हमे श्रम, गाहै दढठां खग बोह गहल्ला ॥ ३
. वीर विच्चखण क्रीत तणी वर, ढाहण खाग श्रारिंदा दूकौ ।
नाथ तणी सुरतेंस नूभ नर, “चित्त ठीक नहीं कुछ रीत न चुकी ॥ ४॥
जेज न कीध ऊंतावढछ जुटौ,. बावठ . फौजां ही थाट विभाड़े ।
आयौं काम महि थट ऊपर, चावठ वंस चुहाणां चाडे ॥ ४0)
गोतसार-गीतकार ने ऊपर-लिखित गीत में सुरतरसिह्ह नामक चौहान वंज्ीय योद्धा का
युद्ध-वणुन किया है । सुरतसिंह:चित्तश्रमता. की व्याघि से -श्रस्वस्थ रहता था। किन्तु
धत्रुत्ों के झा. जाने पर उसने उनसे दस्त्र-बजा कर श्रपने कुल-घर्मं का पालन कर वीर-
गति प्राप्त की । कर्वि उसे सचेत करते हुए कहता है कि हे ध्रंड-बंड बोलने वाले वीर
/ 'सुरतसिंह'! युद्ध-वाद्य बज रहे हैं । उठ, जाग श्रौर युद्धाथं पैर रोप. कर डठ जा श्रौर
_ .हात्र को रंग्प क्रोड़ा का कौशल दिखा । -
श्,
तैडा.- तेरा.1: जोवसी - देखेंगे। ख - वैरी । तमासो > खेल । पैंडा > मार्ग ।
घ्रंडा - झंडबंड,:प्रलशप । बोलणहार - नोलने वाले । श्रतस्मी - श्रनस्र, वीर, किसी
. 'के बंधन को न सहने. वाला । ' - बडा - पागल, चितश्रम ।. घम्बागछ - तांवे के पेंदे
' के नंगाड़े । बग्गा > बजने लगे । द
,'कुर - फकुटिल, दुष्ट । , श्रचलला - धविचल, श्रडिग 1 , भारथ - युद्ध । . समखां -
-.. ' चिल्हादि पक्षियों, देवी ।. बागी - हुई, बजी । सोक - ध्वनि । सरग्गां - दरावलि
: की, स्वगं की श्रोर + क्ींक ० शास्त्रों की झड़ी । उडांगा -. उड़ाने को। शाला - हाथ
-का.संकेत-। कांठा - वीर। बावछ - पागल, उन्मत्त। खाग - खड्ग । करग्गॉ-हाथों ।
८ चाल -.चलकर, प्रस्थान कर ।. तो ऊपर - तेरे पर । . जसबोल - यश के वचन ।
रंहल्ला.- रहेंगे । -- मछरीक - श्वहुवान,।. हमे - श्रव ।.. गाहै - विलोड़न कर ।
चाहें. चलाक़र । 'गहत्ला.- पागल, कीतिकथा ।
; ' जेंज >.विंलम्ब । कीघ --की 1. ऊंतावछ, - शीघ्रता से, तत्काल ।, जुटी > भिड़
तगयात : बावड़ - पागल । थाट - समूह ।. विभाड़ें- संहार करे । श्रायो काम-
' 7... काम झायो, मारा गया ।. चाईे:- चढ़ाकर ।
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