पाणिनि के उत्तराधिकारी | Panini Ke Uttradhikari

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Panini Ke Uttradhikari by उदयनारायण तिवारी - Udaynarayan Tiwari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श ,२,3/४ अकों का प्रयोग किया गया है, बह केवल उच्चारण की मिन्नता ग्रदर्शित करने के लिए है, गणितीय-मान प्रदर्शित करने के लिए नहीं । सूक्ष्म विश्लेषण से 'पध्वनि मे चाहे जितना मीं अन्तर हो, किन्तु इनकी निर्माण-पद्धति तथा इनके ध्वन्यात्मक रूप एक वर्ग के अन्तर्गत है। दूसरे गव्दो में ये ओप्ठ व्वनियाँ हैं और कोई सी हिन्दी-मापा-माषी इन पाँचो दव्दो के प' के उच्चारण में किसी प्रकार के अन्तर का अनुभव नहीं.करता । यहाँ यह वात स्पष्ट रुप से समझनी चाहिए कि “प” ध्वनिग्राम वस्तुत एक वश का परिचायक है और इसके अन्तर्गत, अलग-अलग भाषण-घ्वनियो, प, प*, प5 पर् की' सत्ता सदस्य के रूप मे वर्तमान है । यदि हमे व्यावहारिक रूप में 'प' ध्वनिग्राम का ज्ञान नहोतोहमेप* ,प*, प5, पर्ण आदि के लिए अन्य प्रतीको अथवा वर्णों का निर्माण करना पड़ेगा और तव हमारी वर्णमाला भी चीनी और जापानी की माँति ही जटिल हो जायगी । महर्षि पाणिनि ध्वनिग्राम से पुर्णतया परिचित थे और उन्होने चौदह माहेव्वर- सूत्रों के अन्तर्गत इन्हें वाँघा था 1? यहीं वात ध्वनिशास्त्र (0८६05) के सम्बन्ध मे सी है। पाणिनि ने अपने व्याकरण मे वर्णों के उच्चारण-स्थान, माचाकाल, उदात्त, अनुदात्त , स्वरित आदि के सम्वन्च मे भी विचार किया है। पदग्माम (ऐ०7फ़़6पए८) का सी पाणिनि को ज्ञान था और थव्दो की विक्लेपणात्मक पद्धति के तो वे पूर्ण ज्ञाता थे । इसी प्रकार उन्होंने जो 'परिभापषाएँ दी हैं, वे एक रूप से उदाहरणों में छागू होती हैं और उनके अपवाद नहीं मिलते । सक्षेप में भापा के अध्ययन के छिए जिस प्रक्रिया को चर्णनात्मक भापा-दास्त्री (ए८०पपफुघिए्ट उनघट्ुपा85) . वीसवी नताव्दी के प्रथम चरण से अपनाने लगे हूँ, वह पाणिनि को ईना से ५०० यर्प पूर्व टी ज्ञात थी । इस वात का अनुभव करके आज अमरीका का भापाणास्त्री' मर्ट्पि 'पाणिनि के प्रति नतमस्तक हो जाता है और भावातिरेक से, उसके हृदय से श्रद्धासवलित उद्गार निकल पड़ते है । इस गताब्दो के महान भापाशास्त्री स्वर्गीय ब्लूमफील्ड ने अपनी पुस्तक में कई स्थानों पर इस प्रकार के उद्गार अकट किए हैँ । आप लिखते है-- (वास्तव मे) वह भारत देश था. जहाँ ऐसे ज्ञान का उदय हुआ, जो यूरोप के छोगों की मापा-सम्वन्वी विचारवारा में क्रान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित करनेवाला था ।. . . . जिस प्रकार आज हमारे देग में विभिन्न वर्ग के लोगो ₹. आधुनिक साषाविद्‌ 'ड' को ध्वनिप्राम नहीं मानते । इनके अनुसार अनुरूपता (5छ्धशादाशफ) के लिए महर्पि ने इसे रखा है । --लेखक पाणिनि के उत्तराधिकारी : ५




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