कांग्रेस का इतिहास खंड - २ | Congress Ka Itihas vol--ii

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Congress Ka Itihas vol--ii by भोगराजू पट्टाभि सीतारामय्या - Bhogaraju Pattabhi Sitaramayya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ हिन्दुस्तान फिर निर्णय-स कट में कांग्रेस ने श्रपने जीवन सें--पदले पचास बरसों की भारतीय जनता के सेवाकाल में--श्रपने ही' उपासकों में निरन्तर संघर्ष देखा है ।. इस संघर्ष का प्रकटीकरण क्रमशः एफ शोर तो सक्रियता के उफान श्र दूसरी श्रोर बीच-बीच में ग़ामोशी घर श्रन्तरावलोकन से होता रहा है । संघर्ष की भावना की पहली झलक उस समय थ्रभिव्यक्त हुई, जब 'लन्दन टाइम्स, ब्रिटेन सें व से हुए पेशनयाफ्ता झांग्ल-भारतीय' घर भारतीय नौकरशाही के भूटे थ्राद्ेपों के विरुद्ध बिटिश हुकूमत के प्रति घफादारी की बार-बार घोपणा की गई और राजद्लोह के श्रपराघ को सानने से साफ इंकार कर दिया. गया। बाद में बंग-भंग के साथ वह जमाना श्ाया जब लोग खुशी से राजद्रो्ट बने, लेकिन साथ ही श्रदृ[लत में झपना चचाव भी करते रहे । फिर करीब दस चरस तक ग़ामोशी- सी रही धर बाद में होम-रूल श्वान्दोलन श्राया । इस थ्ान्दोलन में श्ायलैंड की एक मदिला श्रीमती एुनी बेसेरट ने हिन्दुस्तान में ब्रिटिश सत्ता का विरोध किया, लेकिन साथ दी ध्ाण़िरी फेसले शरीर समसोते का जो नक्शा उनके दिसाऐ में था उसमें उन्होंने घिटिश हितों को भी 'धपनी झांखों से छोकल नहीं किया । नया पहलू श्राया, लेकिन इस यीच में वदद ग़ामोशी, जो दर चाह मोजूद होती थी, गायब रद्दी । अ्रसल में ढा० वेसेन्ट कुछ वक्‍त के लिए ही मैदान से '्लग-सी हुई',लेकिन थोड़े-से दी श्रर्से के वाद वह गांधीजी के प्रगतिशील बल्कि क्रान्तिकारी धांदोलन के विरोध में धराकर सेदान में जम गईं। गांघीजी-तो संदान में वीस से भी ज्यादा बरसों से श्रप्रणी रदे--कभी कांग्रेस के प्रमुख नेता के रूप में श्रौर कभी उसके एकमात्र प्रेरक के रूप में । जो दो, 'ादे ये कीप्रेस के चार झाना मेम्चर रहे दो या न रहे हों, लेकिन सत्याग्रह के उनके प्रयोगों ने उनको सदज दी एक ऐसे स्थान पर ला दिया था कि कांग्रेस के श्वगुद्मा, हिन्दुस्तान के नीतिकार श्र इस व्यापक जगत के मित्र के रूप में वे कांग्रेस के सलाइकार चरावर धने रहे । यद्द वात दिखाई पढ़ेगी कि इन :्मौकों श्रौर मोड़ों पर जो लोग किसी समय ध्रगुधा होते वे घाद सें थपने साथियों घोर सहकारियों के तेज क्रम की चजद्द से चाल में पिछुड़ जाते, उन्हें प्ृप्ठचूमि में हो सन्तुष्ट होना पढ़ता शोर वे प्रायः साव्॑ननिक रंगमंच से घलग हो जावे । कभी-कभी वे नये प्रगतिशील पत्त के विरोध में मोर्चा खड़ा करते जैसे कि गोखले धघौर सेहठा ने तिलक के विरोध में किया श्र ढा० चेसेरट ने गांधीजी के । सोटेतीर पर इतिदास में घटनाध्रों का 'झावतंन होता रहता है । यस्ई कांग्रेस ( कक्‍्टूयर १९३४ > श्धियेशन के याद गांघीनी ने कांप्रेस की चार झाना सदस्यता को भी छोड़ देना पसन्द किया; पैसे इस फैसले पर यद शरमेल 165४ में ही पहुँच गये थे । किन्तु यदद एक ऊपरी चीन थी । कारण कि गांधीजी एस शक्ति दू--पसी शक्ति, जो शपने झापकों लिकोदकर एक केन्द्र में संकुचित दो जाती ह, जददां धापथिक दयाव में




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