कबीर की विचार धारा | Kabir Ki Vichar Dhara

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Kabir Ki Vichar Dhara by गोविन्द त्रिगुणायत - Govind Trigunayat

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के [ ३ 3 विशिष्टाद तवादो कहा है । फकु हर साहब उन्हें भेदाभेदवादी मानने के पत्त में. हूं. । संस्कृत-ताहिंत्य के निष्णात विद्वान डा० :भराडारकर ने उन्हें ट्तवादा समझा है 1* , ड उनके योग के सम्बन्ध में भी विविध मत हैं । कुछ उन्हें हृठयोगी *ै सममते हैं तो कुछ राजयोगी 1* कबीर-पंथी में उनका योग “शबवद्‌ सुरति योग” के नाम से प्रसिद्ध है । कचीर के जाति, जन्म और तिथि थ्रादि के सम्बन्ध में भी इसी प्रकार के मत-मतान्तर हैं । सबसे श्विक मनोरू्जक चात तो यह हैं कि उनके अस्तित्व के सस्वन्ध में हो मतभेद उत्पन्न हों गयां है । कुछ ऐमें भी सजन हैं जो उनके अस्तित्व को हो संदिग्ध मानते हूं । अब त्रिचारणीय यह है कि कवीर के सम्बन्ध में इस प्रकार के एक प्क्षोय और विरोधात्मक मत-मतान्तरा का उदय ' कयां और केसे हुआ £ चांस्तव में इसका प्रमुख कारण 'उनके व्यक्तित्व का वें शिष्ट्य ही है । उनकी दिव्य प्रतिभा ने तत्कालीन समस्त सार-पूरी धार्मिक तत्वों का व्आात्मसांत्कार कर! एक ऐसे काव्यमय राम-रूप का. अवतारणा : की है जो प्रत्यक्ष साघु- स्वेरुपी होते हुए भी दिव्य है, अ्रली किक है और हैं ' अनिवंचेनीय । *प्जेहि की रहो भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी” वाली उक्त के श्रनुसार यदि उनके आलोचकों ने श्रपनी भावना के '' अजुकूल ही' उनके स्वरूप के अंग-विशेष को देवा तो वह्द स्वाभाविक ही है । ः महात्मा कबीर का. सं क्िप्त' जीवन-चत्ते कवि की वा शी ' पर, उसके ंन्तजंगत और वहिंनेगत, दोनों की छाया पढ़ती है.। उसकी ' मानसिक ब्रत्तियों का, उसके ' स्वभाव का, . उसकी १ ० की--कबीर पुण्ड [हज फालाश्चसं--पछूु० ७१ २ डा० भणडारकर--'विए्णाविजस शेविड्सर-पू० ७०-७७) ३ डा रामकुमार वर्मा--कवीर का रहस्यवाद ४ योगाक--(कल्याण)--प्र० ६३० २ विर्सन--रिलीज़स, सेक्ट्स -्ॉव, दि हिन्दूज--ट९. ६६...




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