कबीर की विचार धारा | Kabir Ki Vichar Dhara
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12.8 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के [ ३ 3
विशिष्टाद तवादो कहा है । फकु हर साहब उन्हें भेदाभेदवादी मानने के
पत्त में. हूं. । संस्कृत-ताहिंत्य के निष्णात विद्वान डा० :भराडारकर ने उन्हें
ट्तवादा समझा है 1* , ड
उनके योग के सम्बन्ध में भी विविध मत हैं । कुछ उन्हें हृठयोगी *ै
सममते हैं तो कुछ राजयोगी 1* कबीर-पंथी में उनका योग “शबवद् सुरति
योग” के नाम से प्रसिद्ध है । कचीर के जाति, जन्म और तिथि थ्रादि के
सम्बन्ध में भी इसी प्रकार के मत-मतान्तर हैं । सबसे श्विक मनोरू्जक
चात तो यह हैं कि उनके अस्तित्व के सस्वन्ध में हो मतभेद उत्पन्न हों
गयां है । कुछ ऐमें भी सजन हैं जो उनके अस्तित्व को हो संदिग्ध
मानते हूं ।
अब त्रिचारणीय यह है कि कवीर के सम्बन्ध में इस प्रकार के एक
प्क्षोय और विरोधात्मक मत-मतान्तरा का उदय ' कयां और केसे हुआ £
चांस्तव में इसका प्रमुख कारण 'उनके व्यक्तित्व का वें शिष्ट्य ही है । उनकी
दिव्य प्रतिभा ने तत्कालीन समस्त सार-पूरी धार्मिक तत्वों का व्आात्मसांत्कार
कर! एक ऐसे काव्यमय राम-रूप का. अवतारणा : की है जो प्रत्यक्ष साघु-
स्वेरुपी होते हुए भी दिव्य है, अ्रली किक है और हैं ' अनिवंचेनीय ।
*प्जेहि की रहो भावना जैसी, प्रभु मूरति देखी तिन तैसी” वाली उक्त
के श्रनुसार यदि उनके आलोचकों ने श्रपनी भावना के '' अजुकूल ही' उनके
स्वरूप के अंग-विशेष को देवा तो वह्द स्वाभाविक ही है । ः
महात्मा कबीर का. सं क्िप्त' जीवन-चत्ते
कवि की वा शी ' पर, उसके ंन्तजंगत और वहिंनेगत, दोनों की छाया
पढ़ती है.। उसकी ' मानसिक ब्रत्तियों का, उसके ' स्वभाव का, . उसकी
१ ० की--कबीर पुण्ड [हज फालाश्चसं--पछूु० ७१
२ डा० भणडारकर--'विए्णाविजस शेविड्सर-पू० ७०-७७)
३ डा रामकुमार वर्मा--कवीर का रहस्यवाद
४ योगाक--(कल्याण)--प्र० ६३०
२ विर्सन--रिलीज़स, सेक्ट्स -्ॉव, दि हिन्दूज--ट९. ६६...
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