संक्रामक रोग विज्ञानं | Sankramak Rog Vigyan
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43.3 MB
कुल पष्ठ :
1157
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ही
(१२)
ः घमकायों का अघुष्ठान
महामारियों का प्रकोप अधर्मंजन्य है--ऐसी आर सम्मति है । अतः धघर्मे-
कृत्य, यज्ञानुष्ठान, हवन; घर्मोपटेश, स्वास्थ्योपदेशा श्रद्नति कार्य सक्रामक रोगों का
निरोधक उपाय है। क्योंकि हवन से वायु थुद्ध होता है और जीवाणु नष्ट होते
हैं; भारोग्य एवं वछ की प्राप्ति होती है तथा प्राणप्रद (0:5.8००) युक्त
.. सुगन्धित वायु उत्पन्न होता है जिससे जीवनी-दक्ति प्राप्त होती है। अथर्ववेद
में युगगुछु की ' धूप से यक्ष्माणु के नष्ट होने का उपदेरा है। यज्ञ ऋतु-सचियों में
करना चाहिये ! क्योंकि प्राय- ऐसे हीं समय रोग दोते हैं ।
यथोक्तमथवंवेदे--
अज्ञात् यक्ष्मातू उत्त राजयक्ष्मात् त्वा मुंचामि म० १
,.... तस्या: ( ्राद्या: ) इन्द्राी एनं अ्रभुमुक्तमू म० ?
भपव्या यज्ञा वा एते।. तस्माद्तुषु संधिघु अयुज्यन्ते ऋतु संघिषु
व्याघिर्जायते । -. गो०, ज्ञान हे प० १; १६
चुरकेप्युक्तपू-- क
सं कथा धघर्मशाख्राणां महर्षीणां जितात्मनामू ।
घार्मिके: सात्विकेर्नित्य॑ सहास्या बृद्धसंस्मते: ॥।
इत्येतदू भेपजं श्रोक्तमायुष' परिपालनम् ।
येषामनियतो मृत्युस्तस्मिद काले सुदारुणे ॥,
खुश्नुताचार्य ने भी मद्दामारी फेलने का प्रधान हेठु अधर्म, यज्ञ का न करना,
पाप करना अस्ति लिखा जज 1 दृषित देश, दृषित. जल भर भौषघ भादि के
उपयोग से दो श्रकार के रोग पेदा होते हैं। (१) सामान्य.व ( २ ) सरक
चनके श्रतीकाराथ स्थान परित्याग, शातिकर्म, आयश्चित्त; मगल, जप; होम;
तपस्या; नियम; देवता पूजन आदि सत्काय अन्ुष्ठानादि करना चाहिये ।
यथोक्तं सुश्रते--
तासामुपयोगादू द्विविधरोंगम्रादुर्ावों मरको वा ' भ्वेदिंतिपुन
कदाचिद्व्यापन्नेषुकतुषु॒ कृत्याभिशापक्ो धाधर्मेरुपध्वस्यन्तें जनपदाः
चिषीषधपुष्पगन्पेनवायुनोपनीतेनाक्रम्यते यो... देशस्तत्र ' दोपमकर्ति-'
विज्षेषेण कास-दवासवमथुम्रतिदयायदिरो रुग्ज्वरेरुपतप्यन्ते, अद-नक्षत्र'
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