चौहान कुल कल्पद्रुम भाग 1 | Chauhan Kul - Kalpdrum Part - I
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
22.42 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about न्यायरत्न देसाई लल्लूभाई भीमभाई - Nyayaratna Desai LalluBhai Bhimbhai
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७
होने पर भविष्य में दूसरी आइति छपेगो उसमें उनका इतिहास इसो मुआफिक विस्तार
से अंकित होगा, वेसे इस ग्रंथ में अंकित हुई रुपात में अपरणता था गल्ति रह जाने के
विषय में सूचना होने पर उनके वास्ते भी उसमें दुरस्ती को जायगी ं
इस घ्रंथ का ठेखक विद्वान किंवा इतिहास का अभ्यासी नहीं है, वैसे इतिहास की
पुस्तक लिखने की उसकी योग्यता भी नहीं है, परन्तु राजपूताना की गोरवशाली भूमि
में उसका अन्नोदक निर्माण होने से, सिरोही रियासत में जिन्दगी व्यतित होने के
कारण यह ऐतिहासिक घटना से भरी हुई भूमि के प्राचीन जाहोजलाली के स्मारक
स्थल, दंतकथा और वीर पुरुषों की त्रीरता के गीत कव्रित्तों का परिचय होनेका मौका
हाथ लगने से हृदय में उद्भव हुई प्रेम उमि का पोषण करने के बास्ते, ऐतिहासिक
साहित्यों को खोज में लगकर, प्राचीन साहित्यों को एकत्र करने का प्रयत्न किया गया,
और संग्रह हुइं सामग्री से अपने दिल में सन्तोष मनाने के वास्ते गुजराती भाषा में १
' राजयोगी परमार धारावर्पादिव, २ देवी खड्ंग अने चितोडनी पुनः प्राप्ति वर * ३वछहठ
चंका देवडा', नामक तीन ऐनिहालिक उपन्यास रचकर प्रसिद्ध किये, छेकिन उससे
चाहिये वेसा समाधान नहीं होने के कारण जिस चोहान वंश ( देवडा चौहान ) के
अन्नजल से लेखक व .उमके बाछ ब्रच्चों का पाठन पोपण हो रहा. है ओर भविष्य में
होने की उम्मेंद की जातो है, उस चौहान कुछ की कुछ यादगार सेवा लेखक के हाथ
से हो सके वैसी तीघ्र अभिलापा होने ते, प्रथम ' देवडे चोहानों ' के त्रास्ते एक पुरतनामा
अंकित करके इस्वरी सन् १९९२ में मरहूम सिरोही महाराव साहेब सर केसरीसिंह घहादुर
जी. सो. आई. ईं.. के सो. एस. आईं. की हजुर में वास्ते मुढाहिजा के पेश किया गया,
जिसपर उन नामदार ने पतंदगी बताकर समस्त चांहान राजपूतों के वास्ते यह चौहान
कुछ कर्पट्रम ' की रचना करने में सहायता मिले वैसी सामग्री अपने पुस्तक भंडार
से देने की कृपा को, ओर बइआ आदि राजकुछ के इतिहास को जुंद रखने वालों की
चहीओं से मिलान करने का इन्तजाम कर दिया, जिससे हो ऐसा महदू ग्रेथ रचने को
लेखक की महत्कांक्षा फकढिसृत हुई है.
इस ग्रंथ के रचना की सब सामग्री कई बरसों से इकट्ठी हो चुकी थी, परन्तु ऐसा
चडा ग्रंथ वंगेर' आश्रय के छप सके वेसा न होने से वे सामग्री बस्ते में हो पढ़ी रही
थी, दरमियान सिरोही रियासत के देवडे सरदारों की जागीर के हक हकुक के सेटलमेंट
करते वक्त इस सामग्री को सहायता छेने में आई, तर से देवडे सरदारों का ठक्ष इसको
तरफ हुआ, और उन्होंने इस ग्रंथ को प्रसिद्ध कराने की गरज से ता. २७-१-२५ हं
के दिन मौजूदा महाराव साहेव सर स्वरूपरामसिह साहेब के आगे कुछ सहायता देने
का प्रस्ताव किया, जिस पर से ' सिरोही स्टेट प्रेस में यह अ्रंथ छाप देने का स्त्रीकार
हुआ परन्तु उसमें भी बाधा आगई, यानी सरंदारों ने- सहायता के विपय में अपनों तरफ
से जो योजना करना चाही थी वह पूर्ण न हो ने पाइं; और स्टेट प्रेसमें चाहिये वैसा छपाई का
User Reviews
No Reviews | Add Yours...