पतिव्रता - महात्म्य | Pativrata Mahatmya

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Pativrata Mahatmya by स्वामी परमानन्द जी - Swami Parmanand Ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्‌७ 'धमेंको न छोड़े जो काम विपरीत होय उसको दुबारा न करे और जिस कामगें अपना और दूसरेका कल्याण 'दीखे उसे अवश्य करे. पापियोंकी संगतमें जाकर आपभी पापी न हो जाप किन्तु साए हो रहै. क्योंकि पापी अ- पने आपही नष्ट हो जाता है ओर जो छोग पतरित्र पुरु- पॉंसे यह कह कर हंसते हैं कि-पह कम अताधू भौर व्यसनी पुरुषेंका है धम्मे नहीं है और धमेंगें किंचित्‌ मात्र भी श्रद्धा नहीं करते हैं वे निस्सन्देह नाश हो जाते हैं. हे महाराज ! आप पापी मनृष्योंको इस प्रकारसे निः- ) सार समझिये जैसे वाघु भरीहुईं चमेकी धोकनी अथांत्‌ वायुके निकठनेपर फिर फूठी हुईं नहीं रहती है मूठ और घंटी मनुष्योंके दिचारमें कोई सारांश नहीं होता है यह बात हुमकों अंतरात्मासे इस प्रकारसे प्रतीत हो सती है जैसे सयेसे दिन अतीत होता है. मूखे केवल अपनी म- शंसा आप करनेसे शोभा नहीं आते हैं और पण्डित ; मढिन होनेंपरभी अपनी. विद्याका प्रकाश करता है. हमने इस प्रथ्वीपर किसी मूखेकों जो पराई निंदा ओर अपनी स्तृति करता है शुणवान्‌ नहीं देखा. जो |) मनुष्य किसी . पापकमेकों करता है और करके उसका टट>टरपसटरटटरटरटधटटर८८८८७पं८८७८७७८४८५क़ी ग्‌ र्रडडडरधसडर




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