मूर्ति पूजा मीमांसा | Murti Pooja Mimansha

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Murti Pooja Mimansha by बुद्धदेव मीरपुरी - Buddhadev Mirpuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सोमपान ७ हैं। झाप इस मंत्र के अर्थ में लिखते हैं कि-- हे जगदीश्वर आप 'दाओओ यदद सोमादि समस्त रस आपके लिए बहुत उत्तम रीति से तैयार किया है, सर्वात्मा से आप इस का पान करो । जब छायोमिविनय में ईश्वर सोम रस के कटोरे भर-भर पीता हैं तो हमारा भोग क्यों नहीं खाता ? आर्य समाज की यह नई फ़िलासफ़ी हमारी समभा में नहीं श्राती । उत्तर ३-- ऋग० १1३१1१। मन्त्र का अर्थ महर्पि करते हैं--'हे अनन्त बल परेश चायों | आप अपनी छुपा से ही हमको प्राप्त होश्रो, दस लोगों ने श्पनी अत्प शक्ति से ओपधियों का उत्तम रस सम्पादन किया है, 'और जो कुल भी हमारे शरेठ पदाधे हैं, वे सच श्ापके लिए अर्थान्‌ उत्तम रीति से हमने बनाये हैं, श्रौर वे सब चापके समर्पण किये गये हैं, उनको श्राप स्वीकार करो (सबांत्मा से पान करो) इस मंत्र के अर्थ में पान शब्द के अर्थ रक्षा हैं न कि पीना | वक्ता के अभिप्राय से उल्टा अर्थ करना विद्वानों का काम नहीं है । देखिये ऋग्वेद भाष्य में महूर्पि कृत इसी मन्त्र का अ्थ--''जैसे परमेश्वर के सामध्य से रचे हुए पदार्थ नित्य ही सुशोसित होते हैं वैसे ही इंश्वर का रचा हुआ भौतिक वायु है उसकी धारणा से भी सब पदार्थों की रक्ता और शोभा है” कहिये व भी ापकी समझा में आया या नहीं कि--पाहि वा पान का 'अर्थरक्षा वा पालन है । दूसरी वात यह है कि--यहां सवीत्मा से पान है न कि मुँह से, इस से भी पान का अर्थ रक्षा




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