रघुवंशसार | Raghuvansh Sar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.51 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रखुबंशत्वार।' «(१७३
. हैं। यह सुरषेनु सुरमिके समान है। केवढ शिवजीकीं रुपासे
तुमने इसपर आक्रमण कर सका है । इस धेनुके बदढ़े छक्ष
ठक्ष दुधारू गोय देनेसे भी महर्षिका कोप शान्त न होंगा।
हे मुगेन्द्र सजनाकी. क्षेणकाठ वाताठाप करनेते ही मित्रता
हो जाती है। भतेएव पुम्दं इस बन्पुकी प्रार्थनापरे सहमत
होना पढ़ेगा। ..
'* -हिंह राजाकी यह बांत सुनकर खुश हुआ और उनकी
. प्रांथना मांन छी । इतनेमें रांजाका हाथ जो जकड़ेसा गया था.
खुंठ गंपा । उन्होंने अब शंख्र' छोड़कर हिंहके आगे नीचे
: मह करके 'मांसपिंडकी भांति अपनी देंह उसे शॉप दौ। किन्त
_ सिंहका प्रचेण्ट-आधात सोचकेर तिरठी दृष्टसे कभी कभी
. ऊंपरकी और देखने ठगे । इस संमय स्वगंसे विद्यापरंगण
: 'राजाके मस्तकपर पृष्पपृष्टि करने छंगे । सुरमितनया नन्दिनी
._ रॉजाको संम्बोधन करके बोछी “ वह ! उढो ।
राजा उठकर कया. देखंते हैं कि वहां सिंह नहीं है । केवठ
नन्दिनी खड़ी हुईहै। भंथ और विस्मयते घिरेहुंए राजा चित्रकी
. भांति खड़े रहे।उनकी यह दशा देखें न॑न्दिनी बोठीः-वत्संमिंयकी
त्यागो, मैंने तुम्हारी मक्तिकी परीक्षा करनेके छिये माया विस्तार
_ की थी । सिंह जो मुझपेर' आक्रमण करना चाहता था पेह
' बनावटी सिंह था.। महापिकी रुंपासे हमे सिंह कया यम भी
कुछ नहीं कर सकतें । तुम्हारी गुरमक्ति और गोंमक्तिकी
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