वेदान्त दर्शन | Vedant Darshan
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.11 MB
कुल पष्ठ :
136
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ड# भापषांजुदाद-सड्ति ( श५ ) की
जीचशब्द्से नहीं कहा जासकता, क्पोंफि-में इस मद्दान,
परमात्माकों 'झादित्यकी समान उ्योतिमथ,तमसो नाश कर,
घ्प्रपाकत दिव्य शरीर घाला जानता हूँ, इत्यादि, पुरूप-
सच्तमें सनके 'अपाकत शरीरका चणेन दे ॥ २० ॥
मदबव्यपदेशाब्चान्य।ः ॥ २३
थह घात 'झवश्य दी स्वीकार करनी पड़ेगी कि-छंत-
थीसी परमात्मा घादित्य आदि [शरीरोंके अस्सिमनी
जीचोंसे झन्प है, “जो 'झादित्यमें स्थित दोकर सी आदित्य
से छान्थ हैं झौर जिनको छादित्य नहीं जानता 'झादित्प
जिनका शरीर है, जो शादित्यके भीतर -स्थित - दोकर
ादित्पको परणा करते हैं,घद्दी झान्तयासी परमात्मा हैं
चद हो अग्त हैं, इत्यादि बूददारर्पकव्ती स्मुतिमें चिज्ता-
नात्मासे' 'झन्तयामी परमात्साका भेद पतीत . होता है
चर “छादित्यके 'सन्तचेती परसात्सा है इत्यादि स्तियों
के साथ समानता भी घतीत छोती दे,इससे सिद्ध छुआ
कि -इसकारणमें परमात्माका ही उपदेश -कियागया छे२१
अआकाशस्तल्िंगात्॥ र९ ॥
किसी समय राजा जेवजिसे एक ज्ञाह्म्णने पुश्न
किया था, फि-एयिवी झादि लोकॉका धार स्या है,
जाने उत्तर दिया कि -झाकाश दही सथका साधार दे,
| झाकाशसे हो सबकी उत्पत्ति हुई है छर 'छाकाश ही
स्यक्ते पूलयका स्थान है । इस चचनसे ._ सन्देद्द होता है
क्-पदाँ आकाश शब्दसे ऋूताकांश लिया जायगा या
परन्ना ? झाकाश शब्द भ्ताकाशका चाचंक हीं पसिद्ध
है, उसमेंसे ही वायु 'मादिके कमसे सकलग्द्त स्वुष्टिकी
विवि वी दि वी व. बी वी
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