हिंदी के निर्माता भाग 1 | Hindi Ke Nirmata Vol-1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.89 MB
कुल पष्ठ :
292
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ११
हर नाम सुख का मूल है, आवद का फल-फूल हूं ।
दो-सिंधु का यह कूठ है, गोविंद भज, गोबिंद भज ॥
हर नाम रस जिसने पिया, वह कल्प-कत्पातर जिया ।
ब्राह्मण कि वह चाडाल हो, हर नाम मे खुशहाल हो।
दौलत से मालामाल हो, गोधिद भज, गोधिद भज॥
द श्र शरद
बस, कुन 'निसार' ई गुफ्तगू-दर फारसी-गों बेह अजू ।
बायद-न मूदन जिक्रेऊ, हर नाम गो-हरनाम गो ॥
मुद्ी जी भाषा' के प्रेमी थे । और उन्होने जो भाषा लिखी है वह
सस्कृतमिश्रित ऊँचे दरनजे की भाषा है । और उसी भाषा में अपना
'सुखसागर' और 'गीता' लिखी है । उन्हे उस साधु-भाषा का हिंद-समाज
से, उर्दू के प्रवेश के कारण, उठ जाने का भारी दुख था । उन्होंने
लिखा है:--
“रस्मो-रिवाज भाखा का दुनियाँ से उठ गया ॥”
साराश यह कि मुशी जी ने हिंदुओ की शिष्ट वोल-चाल की भाषा
में ही अपने भाव व्यक्त किए है । उर्दू से भाषा नहीं ली । इनकी क्रियाओं
और शब्दों के स्वरूप स्पष्ट बताते हूं कि उर्दू से सर्वथा पृथक खड़ी बोली
मे ही उन्होने अपनी पुस्तक लिखी है । उन्ही की भाषा का. बाइबिल के
अनुवादकों ने अनुसरण किया है। स्वय केरे साहब ने बाइबिल का हिदी-
अनुवाद “नये धर्म-नियम' के नाम से सबत् १८६६ में कराया, फिर
समग्र ईसाई-पुस्तको का भी भाषानुवाद सबत् १८८५ में समाप्त हुमा
और इन सबमें भाषा मुशी सदासुख राय की ही रक्खी गई । इनमें
उर्दूपन को स्थान नहीं दिया गया । मुशी जी की भाषा इस तरह
हिदी-गद्य के विकास-काल में आदशें रूप से स्वीकार की गई।
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