हिंदी गद्य के युगनिर्माता | Hindi-gadh Ke Yougnirmata

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Hindi-gadh Ke Yougnirmata by जगन्नाथ प्रसाद शर्मा - Jagannath Prasad Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र हो चसतु एक ही प्रकार का वर्गबिमाजन एक दी प्रकार का जीवंन था और उसकी समस्या भी एक दी थी । इस चृष्टि से प्रमचंद की कृतियाँ नवनवता के पूर्ण उन्मेप से विद्दीन थीं । विपय्र-संवंधी यद्द एकांगिता अवश्य खटकतों है पर श्रपनो इस परिमिति के कारण उन्होंने उपन्यास के रचना-सौंदये को कहीं भी विकृत नहीं होने दिया । भले दी कथामक शरीर परिस्थिति-योजना एकदेशीय सालूम पढ़ें पर जीवन के संघ का स्वरूप झौर युग-द्शंन में जो चत्कर्पान्मुख विकास दिखाई पड़ता है चद्द भारत के राजनीतिक वातावरण का पूरा प्रतिनिधित्व करता गया है। ई० सन्‌ १६२१९ से लेकर ई० सन्‌ १६३४ की सभी विचारघाराओं की_ सजीव _कलेक उनकी रचनाओं में मिलती है । प्रमचंदजी इस विचार से बढ़े भावुक ौर जागरूक द्रा और चिंतक थे। महात्मा गांधी के देन से प्रभावित होकर निर्तर श्रपती भावनाओं आौर द्दूर्शों का परिष्कार करते गए थे यह चृत्ति उनकी प्रमतिशीलता का व्च्छा उद्घाटन करती है.। वे सामान्य जन-जीवन के सच्चे पारखी थे झौर जन-सादित्य के श्रेष्ठ निर्माता थे । दान उनकी अंतिम कृति थी श्ौर उस रचना तक ाते ाते उनकी समस्त चुभूतियाँ विचार झाकांक्षाएँ और मान्यताएँं अपने निखार पर शो चुकी थीं 1 इसलिए जब ंतिम वार वे अपसी चिर- परिचित्त चस्तु को लेकर संमुख झाए तो नए उत्साह नई योजना झौर तात्त्विक परिप्कार के साथ । इस उपन्यास में जहाँ उनकी सारी पूर्व कतियों का सार एकत्र हुआ मिलता है वहीं बहुवस्तुस्पर्शी घतिभा का पूर्ण विकसित स्वरूप भी आालोकित हो उठा है। भारताय जीवन की रवी सोण परीक्षा बिचतिं भौर स्वरूप-विन्यास दी इस कति का मुख्य लदय था। चस्तुत इसी स्थल पर आकर प्रेमचंद पूर्णतया शुद्ध बुद्धि सेप्रेरित निर्लिप्त कलाकार वन सके हैं । उनके चस्तु-म्रसार में ्ाने- चाही जीवन की विंसिन्न परिस्थितियाँ विचार-प्रवाह झौर भावनाएँ यहीं खुलकर खेल सकी हैं और अपने छतिकार को सर बना गई हैं ।




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