दिनकर नील कुसुम | Dinkar Nil Kusum
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.09 MB
कुल पष्ठ :
122
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
रामधारी सिंह 'दिनकर' ' (23 सितम्बर 1908- 24 अप्रैल 1974) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं।
'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद 'राष्ट्रकवि' के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तिय का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है।
सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया ग
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मैंन वह जो स्वप्न पर केवल सही करते,
आग में उसको गला लोहा बनाती हूँ;
भौर उस पर नीव रखती हूँ नये घर की,
इस तरह, दीवार फोलादी उठाती हूँ।
मनु नही, मनु-पुत्र है यह सामने, जिसकी
कल्पना की जीभ में भी धार होती है;
बाण ही होते विचारों के नहीं केवल,
स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।
स्वर्ग के सम्राट को जाकर ख़बर कर दे,
रोज ही आकाश चढ़ते जा रहे है ये;
रोकिये, जेसे बने, इन स्वप्नवालों को,
स्वर्ग की ही ओर बढ़ते था रहे है ये।”
१९४६ ई०]
चाँद और कवि १७
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