कृषि सार | Krishi Saar

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Krishi Saar by जागेश्वर प्रसाद सिंह - Jageshvar Prasad Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) तब मिझ्ी रवी के फसल चोने योग्य दो जाती दै--पर इस बात का भी ध्यान रखना चाइदहिये कि पानी भरे खेतों में मवेशी या पशु न घूमने फिरने पावं नहीं तो जसीन पत्थर छे ऐसी सख्त व ख़राब हो जाती है व ज़ोतने वोने योग्य नहीं रह जाती झगर किसी तरह बोया भी जावे तो कुछ पैदा नद्दीं होताा बलुदद--वा रेतीली जिसको “वलथर” श्र “मुंड भी कहते हैं इस सिट्टी के कण बड़े होते हैं यह लिकनी द नर्स नहीं होती सठकझे कड़ी व खुरखुरी होती है जल तुरन्त सूख जाता है ऐसे मिट्ठो में चातू व नट्डुड़ के कण मिले हुए. होते हैं-- पेसी ज़मीन चुत जद गे व ठंढी हो जाती है पौधों पर तुरन्त झसर थर्मी व «सर्दी का पहुंच जाता है इसी कारण चलुई ज़मीन कम उपजाऊ (उव्वंसा) होती है । उपयुक्त दो ही किस्मों की सिट्टी सिल कर कई छिस्म की मिट्टी वच गई है आर उनके शुण व दोष का विचार कम व ज्यादा मिलावट पर निशेर रहता है अगर ज्यादा हिस्सा “पैर की हुझा तो अच्छी जमीन ख्याल छी जाती है इसके विपरीत अगर “वलुई” मिट्टी का ज्यादा भाग हुआ तो वह मिट्टी ख़राब समसी जाती है । इन्हीं दोनों मद्ियों के मिल्ञावट से सिश्न लिखित सेद दा झुए हैं । ह कक (९ जिसमें १०० झंश मिट्टी में दूृश से बीस झंश ' तक चिकनी मिट्टी मिल्ली हो और शेष बालू रेत हो तो उसका नाम “बलुई” मिट्टी है ।




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