वचनामृत सागर | Vachanamratsagar

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Vachanamratsagar by कृष्ण गोपाल - Krishan Gopal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ्न्थो के पठन-याठन की सहिसा । < रखते है, नवीन उत्साह देते है और श्रद्धा को जागत करते है । दुःख को शान्त करते है, और कठिन हृदय के कुटुस्बियो के पाले पड़े हुए मनुष्य का. जीवन आदर बनाते है दूर २ के युगो को और देशों को एक साथ मिलाते है. सौंदर्य के नये जगत्‌ उत्पन्न करते है और स्वग से सत्य को लाते है। इन सब बातो का जब मैं विचार करता हूँ, तो ईश्वर की इस बख्शिश के लिये उसे अनेक घन्यचाद देता हूँ । ् --जेग्स फ्रीमेन कछाक । ( रे४ ) ग्रन्थ सित्र दीन मनुष्यों के सित्र है। -एजाज एस हिला 1 (३६ ) मेरे अभ्यास गृह में सुभे विश्वास पूर्वक बुद्धिमान पुरुपो से ही बात-चीत करने का अवसर मिलता है । बाहर तो मूखें लोगो के संस से छूटना सुश्किल दो जाता है। -ुसर विलियम वाकरे ! ( देख ) कितने ही शअ्रन्थो का केवल स्वाद लेना पड़ता है, कितने दी अ्न्थ निगलने के होते है और थोड़े से श्रन्थों को चबाकर खाना और पचाना पढ़ता है । थ्रर्थात्‌ कितने दो ग्रन्थों का सिफ' थोड़ा सा भाग पढ़ने का होता है,




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