कल्याण नमामि रामं रघुवंशनाथम | Kalyan Namami Ramam Raghuvanshnatham
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
63.39 MB
कुल पष्ठ :
1068
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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८ # समासि रास रघुवशनाथम, के
खन्स-सश>द>स >> रकाऊ-द्ाऊ-दन७-दाि-द्ऊ- दान
लो मूर्ख शुरुसे ईर्ष्या करते हैं; वे करोड़ों यु्गोतक रौरव नरकर्मे पड़े रहते हैं । फिर ( वहसि निकल
कर ) वे तिर्वकू ( पु; पक्षी आदि ) योनिर्वोमें शरीर घारण करते हैं और दस हजार जन्मॉतक दुश्ख पाते
रहते हं॥३॥
बेड रहदेसि अजगर इव पापी । सपे होदि ख़ल मल मति व्यापी ॥
महा विठप कोटर मई जाई | रड॒ अघमाघम अघगति पाई ॥ ४॥
अरे पापी ] द् गुरकें लामने अजगरकी भाँति बैठा रहा ! रे दुप ! तेरी इुद्धि पापसे ढक गयी
है; [ अतः ] दू रुप हो जा । और: अरे अघमसे भी अघम | इस अघोगति ( सर्पकी नीची योनि ) को पाकर
किसी बढ़े भारी पेड़के खोखलेमें जाकर रद्द ॥ ४ ॥
-दाहाकार कीन्द गुर दारुन सुनि सिर साप।
कंण्ति मोहिं विठोकि अति उर उपजा परिताप ॥ १०७ (क) ॥
शिवज्ञीका भयानक झाप छुनकर शुरुीने हाह्मकार किया । मुझे कॉपता हुआ देखकर उनके
दुृदयमें बढ़ा सन्ताप उत्पन्न हुआ ॥ १०७ ( के ) ॥
करि दंडदत सप्रेम दविज सिंव सन्मुख कर जोरि।
विनय करत गदरद खर समुझि घोर गति मोरि ॥ १०७ (ख ) ॥
प्रेमसहित दण्डवत् करके वे ब्राह्मण श्रीदिवजीके सामने हाथ जोड़कर मेरी मयझकर गति ( दण्ड ) का
विचार कर गदुगद वाणीसे विनती करने ढगे--॥ १०७ (ख ) ॥|
नमामीशमीद्याव निचाणरूप॑ । विभुं व्यापक ब्रह्म चेदसरूप॑ ॥
लिजं॑ चिगुंण निर्चिकट्प लिरीदं । चिदाकाशमाकाशवासं.. भजे5दं ॥१॥
हे मोझखरूप; विभु; व्यापक; ब्रह्म और बेदत्वरूप; ईदान दिशाके ईश्वर तथा सबके स्वामी श्रीदिवजी !
में आपको नमस्कार करता हूँ । निजस्वरूपमें स्थित (अर्थात् मायादिरहित); [. मायिक 3 गुणोंसे रहित) भेद्रदित;
इच्छारहित; चेतन आाकाशरूप एवं आकादकों ही वल्नरूपमें धारण करनेवाले दिगम्बर [ अथवा आकाशको भी
आच्छादित करनेवाले ] आपको मैं भजता हूँ ॥ १ ॥
नलिराकारमोकारदूद तुरीयं । गिंस ज्ञान गोतींतमीद गिरीदां ॥
कल मद्दाकाल काल कपाल । णुणागार संसारपार नतो्हें ॥२॥
निराकार) आ्ञारके मूल; तुरीय ( तीनों शुर्णोठे अतीत ); वाणी; ज्ञान और इन्द्रियोले परे; कैढासपति;
विकरा्; महाकाल्के भी काल; कृपाछ; शुर्णोके घाम; संसारसे परे आप परमेश्वरको में नमस्कार करता हूँ ॥२॥
चुपाराद्धि संकाश गौर गमीर | सचोभूत कोठि प्रभा श्री शरीर ॥
चर व चार गंगा । लसद्धालवालेन्दु॒ कठे झुजंगा ॥३॥ -
चछके समान गौरवर्ण तथा गम्मीर हैं, निनके दरीरमें करोड़ों कामदेर्वोकी ज्योति एवं छोमा है;
लिनके रिरपर झुन्दर नदी गज्ञानी विराजमान हैं; जिनके छछाटपर द्वितीयाका चन्द्रमा और गेम ्सप
चुशोमित हैं ॥ ३ ॥
चलत्कुडल सर छुनेत्र॑ विशाल । असज्ञाननं. चीलकंटठ. दयालें ॥ -
खा न सुण्डमाल । प्रिय शंकर खवेनाथ. मजामि ॥ ४४
ऊुण्डल दिल रहे दूं; सुन्दर श्रकुरी और विशाल नेत्र हैं; जो प्रसन्नमुख, नीलकण्ठ और
दयाड हैं; सिंहचर्मका वल् धारण किये और सुण्डमाला पहने न क
_ रलेगडे भीकरबीको मैं मनता हूँ ॥ पहने हैं; उन सबके प्यारे और सबके नाथ; [ कल्याण
कक
न ऊ-धाऊ- ७ दाज/
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