चम्पक सेठ | Champak Seth

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Champak Seth by पंडित काशीनाथ - Pandit Kashinath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला परिच्छेद । ६ कतरटाथत था था पा पाथाधापराथ्ता धवन रखे-रखे उकताकर आपदो-भआप बोल उठो -- अव तो यही की चाइता है कि करा इस पेटोको सुंइसे बाहर निकालकर रख दूँ और गड्ासागरमें क्रौड़ा करूँ । यही सोच उसने पेटो खोलकर कुमारी चन्द्रावतीसे कहा- बेटो मैं ज़रा थोड़ो देर यहीं जलमें क्रोड़ा करने जाती हँ । तब तक तू भी करा पानोके किनारे क्रोड़ा कर ले । यह कह व तिमि- गिलो क्रौड़ा करनेके लिये दूर चलो गयो । इधर चन्द्रावती श्रपने कृंदखानेसे निकलकर इधर-उधर घूमडी रही थी कि इतनेमें इवाके भोकिसे बरती हुई राजकुसा- रवालो वह पेटो भी वीं आ पहुँची । उस सन्दूकको देख- कर चम्ट्रावती को बढ़ा कौतूदल हुआ और उसने भटपट उसे खोलकर देखा तो उसमें राजकुमारके रूपर्का एक आदमी सोया मा पाया। रूसने तुररंतही अपनों अँयूडोसे वह अंगूठी उतार लो जिसमें ज़चर उतारने वाली सच्ि जड़ों ुट्टे थी और रसोको जलमें डुवोकर उसी ललसे कुमारका सि- अन करने लगी । तुरंतछी कुमार चोशमें आकर उठ बैठे । अब तो रालकमारोको साफ मालूम पढ़ने लगा कि. मैंने इनीं राजकमारका चित्र उस बार देखा था। यही सोचकर वह मन-हो-सन बोजो -- अवश्य यही कुसार रलदत्त हैं जिनके साथ मेरे पिताने मेरा विवाह नियय किया था । यद्द बात सनमें आतेहो बच बड़ी दर्षित इुई और कुमार सी उसे पहचानकर .फूले शष् न समाये। अब लो दोनों एक




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