स्वामी दयानन्द और जैन धर्म | Swami Dayanand Aur Jain Dharm
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.67 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
विद्वानसे पढ़ा ! इसलिये नष्ट अष्ट बुद्धि होकर ऊटपटांग
चेदॉकी निंदा करने ठगे” इत्यादि-यद्यपि सवा मीजी महाराजका
यह कथन (इनमें वेदोंके जाननेवाला कोई विद्वान नहीं है
इत्यादि) संभव नहीं कि, उचित हो ! परंतु स्वामीर्जाकि कथनकों
. एक दफा चुपचाप सुन. ठेना हमारे लिये जरूरी है ! स्वामी
*' दयानंदजी ” कहते हैं “ दुष्ट वाम मार्गयोंकी प्रमाण शून्य
कपोल कह्पित ख्रष्ठ टीकाओंको देखकर वेदोंसे विरोधी होकर
(चावोकादि) अविद्यारूपी अगाध समुद्रमें जा गिरे” इसका
तात्पर्य यह है कि, वेदोंके जिन भाष्योंको देखकर चार्वाकादि
वेदोंकी निंदा करते हैं, वे भाष्य वाम मार्गियोंके बनाए हुए.
हैं ! वाम मार्गियोंने अपने स्वाथ वद्चसे वेदॉपर मद्य मांस तथा
व्यभिचारका कक लगाया है ! परंतु वेदोंमें कहीं मांसका:
खाना नहीं लिखा ! । हमारा इसमें इतना ही कथन है कि,
कदापि स्वामीजीके प्रतिपक्षी, स्वार्मीजाकि विषयम भी यहीं
कहूँ कि, स्वामी “ दयानंद ” सरस्वतीजी वेदोंके वास्तविक
रददस्यको नहीं समझे ! उन्होंने ब्रथा ही प्रमाण शून्य कपोठ
कल्पित अथे करके वेदोकी सत्यताको नष्ट अष्ट कर दिया है !
यदि स्वामीजी तनिक भी अपनी बुद्धिसे काम छेते तो ऐसी
कदापि न कंहते कि; वेदोंके भाष्य वाम मार्गिथोंके बनाए हुए
हैं ! स्वामीजी दूसरोंको अविद्यारूपी अगाध समुद्रमें गिराते हुए
स्वयं ही आाविद्या के गंभीर समुद्रमें गो ते गा रहे हैं ! जैसे कि; ब्राह्मण
सवेस्वके सम्पादक इटावा निवासी पंडित भीमसेन शमाजी
लिखते हैं कि, “' जिस यज्ञादिक कमेमें जिसप्रकार जिस
पडुका बलिदान वेदमें कर्तव्य कहा है. वहाँ वह के हिंसा
नहीं अर्म नहीं किंतु वेदोक्त घमे है ” [ब्रा. मा. ४ अं. १ पर. १९]
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