बुद्धवचन | Budh Vachan

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Budh Vachan  by भिक्षु आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Anand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न हरे हिन्दी रूपान्तर देना ही चाहिये सोच मेने पहले उन सब पालि उद्धरणों को नागरी अक्षरों में लिखा जिनसे महास्थविर ज्ञानातिलोक ने जमेंन और अंग्रेज़ी में अनुवाद किया था । फिर मूछ पाछि से उनका हिन्दी अनुवाद किया । जमंन से में अनुवाद कर न सकत्ता था और एक ऐसे संग्रह का जिसका मूल पालि में हो अंग्रेजी से अनुवाद करते लज्जा आती थी। हमारे अपने देश की भाषा हो पालि और हम उसका हिन्दी रूपान्तर देखें अंग्रेज़ी के माध्यम हारा हि अनुवाद में मैंने जल्दी नहीं की जल्दी कर भी न सकता था। पुरानी बात को आज की भाषा में कहना सरक्त नहीं जान पड़ा। फिर भी मैंने अपनी ओर से कोशिश की कि मूल-पालि से भी चिपटा रहूँ ताकि केवल आजकल्त की भाषा की घुन में मूल-पालि के भाव से विल्कुल दूर न जा पढें और आजकल की भाषा से भी चिपटा रहें जिसमें अनुवाद बिल्कुल मक्खी पर मकक्‍खी मारना न हो जाय । अपने उद्देश्य में कहाँ तक सफल हुआ इसका में स्वयं अच्छा निर्णा- यक नहीं समझा जा सकता। अनुवाद कर चुकने पर भाई जगदीश काइयप जी के साथ सारा अनुवाद दुहरा लिया भया। उनकी सलाहों के लिए उन्हें धन्यवाद देते डर ूगता है । अपने आपको कोई कैसे धन्यवाद दे ? पाठक कहीं कहीं कोप्ठक में एक दो दाव्द देखेंगे वे शब्द कोष्ठक में इसलिए जोड़ दिये गये हें कि उनसे विपय स्पप्ट हो जाय और वे दाव्द मूल-पाछि के भी न समझे जायें । वरिपिटक में से जिस जिस स्थल से मूल-पालि के उद्धरण चुने गये हैं उन सब का संकेत उद्धरणों के आरम्भ में किनारों पर दे दिया गया है --- म-मज्तिम निकाय सन्तंयुत्त निकाय दी-दीषं निकाय




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