पालि व्याकरण | Pali Vyakaran

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pali Vyakaran by भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about भिक्षु धर्मरक्षित - Bhikshu dharmrakshit

Add Infomation AboutBhikshu dharmrakshit

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हद. लू ऐ औ पालि में नहीं होते । ऐ के स्थानमें ए हो जाता है । जैसे-ऐरावण न एरावण वैमानिक स्‍ वेमानिक वैयाकरण -- वेय्याकरण । कह्दी-कद्दी ऐ का इ तथा इंभीद्ोजाते है । जैसे-ग्रैवेय गीवेय्य सैन्धव न सिन्धव । जौ के स्थान में ओ हो जाता है । जैसे--औदरिक ओदरिक दौबारिक न दोवारिक । कहदी-कह्दी उ भी दो जाता है। जैसे--मौक्तिक ० मुत्तिक औद्धत्य उद्धच्च । पाछि भापा में द और प नहीं होते केवल स ही द्वोता है। संग्प्ति छ हिन्दी तथा सस्कत में व्यवदत नहीं है किन्तु मराठी में इसका अब भी प्रचलन है । ्‌ पालि में व्यम्जन दृल्पन्त नह्दी होते और न तो पढ के अन्त में स्थित निग्गद्दीत मू होता है । पालि में विसर्ग और रेफ भी नहीं होते । रेफ का कहीं-कद्दी छोप हो जाता है और कहीं कद्दी वह र हो जात है । जैंसे-- कर्म मन कम्म सर्व - सब्ब तर्हि न तरहि महा मदारहो आर्य अरिय सूर्य न सुरिय क्रीत न कीत मार्या भरिया पर्यादान स्‍ परियादान प्रेत - पेत समग्र समग्ग इन्द्र न इन्दो । श्




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now