राजस्थानी साहित्य और संस्कृति | Rajasthani Sahitya Aur Sanskriti
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.41 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ. मनोहर प्रभाकर - Dr. Manohar Prabhakar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रद
नीचे के वंझा-वृक्ष से उपयु क्त बातें श्रौर भी. स्पष्ट हो जायेंगी ।
ग्रायंभाषाएं
वैदिक संस्कृत
पाली संस्कृत
शौरसेनी प्राकृत मागधी प्राकृत महाराष्ट्र प्राकृत
“ गुर्जरी श्रपम्रश शीरसेनी श्रपश्र था
हा दे |
राजस्थानी ह्न्दी ही
किस निश्चित समय मे राजस्थानी का प्रादुर्भाव हुमा, कहना कठिन है । परन्तु
प्रनुमानं होता है कि कोई ग्यारहवी शताब्दी के पूर्वाद में श्रपश्न श से प्रथक् होकर
इसने स्वतन्त्र भापा के रूप में विकसित होना प्रारंभ किया होगा ।
राजस्थानी भाषा के श्रन्तर्गत कई वोलिया है जिनमे परस्पर विशेष श्र तर नहीं
है । सिर्फ भिन्न-भिन्न प्रदेशों मे बोली जाने के कारण इनके भिन्न-भिन्न ताम पड़ गये है।
मुख्य बोलियाँ पाच है--मारवाड़ी, ट ढाडी, मालवी, मेवाती श्र वागड़ी ।
मारवाड़ी
मारवाडी का प्राचोन नाम मरुभाषा है । यह जोधपुर, वीकानेर, जेसलमेर तथा
सिरोही राज्यो मे प्रचलित है श्रीर श्रजमेर-मेरवाड़ा एवं किशनगढ़ तथा पालणुपुर के
दोखावाटी प्रदेश, सिंध प्रान्त के थोड़े से श्रश श्रौर पंजाब के दक्षिंय मे भी बोली जाती
है। मारवाड़ी का विशुद्ध रूप जोधपुर श्रौर उसके श्रासपास के स्थानों में देखने मे श्राता
है । यह एक श्रोजगुण विशिष्ट भाषा है । इसका साहित्य भी बहुत वढ़ा-चढ़ा है । इसमें
संस्कृत, प्राकृत श्रौर श्रपश्न शा के शब्द विशेष मिलते है । कुछ भ्ररवी-फारसी के शब्द भी
सम्मिलित हो गये है। मारवाड़ी की कुछ श्रपनी विज्ञेतायें है । जेसे, छंदो मे सोरठा छंद,
श्र रागों मे माँड राग जितना श्रच्छा इस भाषा मे खिलता है भारत की ग्रन्य किसी
प्रान्तीय भाषा में उतना म्रच्छा नहीं मिलता । मारवाड़ी गद्य श्र पद्य दोनो के नमूने
देखिए--
(क) एक बॉजुस कने थोड़ो-सो धन हो । उणुते रोजीना इण: बात रो डर रेवतो
के संसार रा सगला चोर श्रर डाकू मारा ही धन माथे निजर गड़ोयोड़ा है 1 ऐड़ी नहीं
3.
हुवे के वे कदई इने सूट ले । वो, श्रापरा धन ने वचावख वास्ते श्रापरे कने जो माल-
User Reviews
No Reviews | Add Yours...