एशिया में प्रभात | Asia Me Prabhat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.44 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ १३ 1
प्रजातंत्र वास्तव में सच्चा, लाभदायक धर पवित्र है या नहीं
'प्रजातंत्र' का थे तो यद्दी, है न फि किसी देश में मनुष्य व्दों के-
समाज पर मनमानी न करने पावे ? परंतु साथ दी यह भी:
सोचना उतना ही 'झावश्यक है कि एक मनुष्य की तरह दुष्ट
प्रकृति के अनेक मनुष्य, झपने निजी स्वार्धों की रक्षा करने के
' लिये, जन-साघारण को चकमा देकर, उनके स्वत्वों को जार या.
क़लोसर से भी झधिकतर भयंफरता के साथ न कुचल डालें । क्या
कई देशां के मालदार श्र स्वार्थी झाद्मी वहाँ की राष्ट्रसभाओं
में घुसकर प्रजातंत्र की धूल नहीं उड़ा रहे हैं ? अमेरिका के
प्रजातंत्र में कई ऐसे दोप उपस्थित हो. गए हैं, जिनके कारण:
हाँ भी वास्तविक स्वतंत्रता छुप्तप्राय-सी हो गई है । सच्चा और
वास्तविक प्रजातंत्र तो वह है; जिसमें. छोटे .'घौर चवड़े श्पने
निजी लामों की.पूर्ति की चेष्टा को त्यागकर समंन लाभ, समानः
प्रतिष्ठा और समान प्रेम के भाव में रत हो जायें । जापान को
इसी प्रकार की स्वाथेशून्य एवं जगदुपकारिणी पश्रजातंत्र-सभ्यता
का निर्माण करना चाहिए; ताकि बड़े लोग छोटों की और छाटे
शोग बड़ों की चिंता करें, और '्ापस की थुक्ा-फृज़ीदत करने
तथा एक दूसरे. के मुँह का कौर छीनने के लिये दुलबंदी न करें ।
यहीं जापान का धार्मिक, कत्तेव्य श्र व्यावहारिक उपदेश तथा.
सच्चा संदेश होना चाहिए 1
एशिया के मिन्न-सिन्न भागों में कुछ ऐसे महामना, उदार-
स्वभाव श्और देवोपम मनुष्य उत्पन्न हो चुके हैं, 'और भविष्य में:
भी उाधिकतर संख्या में-होंगे,..जो बस्तुतः इंध्र. के सादात
: छावतार ही होंगे । - वे समस्त . एशिया को सच्ची स्वतंत्रता, सच्ची:
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