विनय पिटक | Vinay Pitak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ 3 प्रस्तावको दृहराते हुये उसके विपक्षमें बोलनेके लिये तीन बार तक अवसर दिया जाता था जिसे अ न - श्रावण कहते थे और अन्तमें श्रा र॑ णा द्वारा सम्मतिके परिणामकों सुनाया जाता था । अन्य पुराने प्रंथोंकी साँति इस विनय-पिटकमें वर्णित विषयोंकी सुर्खी देनेंका र्याल बहुत हो कम रबखा गया है । वस्तुत यह ग्रंथ तो कंटस्थ करनेवालोंके लिये था और उनके लिये सुखियाँ उतनी आवश्यक न थीं । मेने सभी जगह अपेक्षित सुखियोंको भिन्न टाइपोंमें दे दिया है। अपने पहिछेके अनु- वादोंकी भाँति यहाँ भी अन्तमें विस्तृत परिशिष्ट दे दिया है । यदि पाठकोंकी सहायता प्राप्त होगी तो रह गई शुटियोंको दूसरे संस्करणमें ठीक कर दिया जायेगा । च्दया ) राहुल सांकृत्यायन ७-७-३४ ई०




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