Jaatak Khand -2 by भदन्त आनन्द कौसल्यायन - Bhadant Anand Kausalyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| १६ | विषय पृष्ठ १७०. ककण्टक जातक २१३ [ यह कथा महाउम्मग जातक (५४६) म हू। ] ३. कल्याणधम्म बग २१४ १७१. कल्याणधस्म जातक २१४ [प्रब्जित न होने पर भी घर के मालिक को प्रन्नजित हुआ समक सभी रोने पीटने लगे। घर के मालिक को पता लगा तो वह सचमुच प्रब्नजित्त हो गया । ] १७२ दहर जातक २१७ [नीच सियार का चिल्लाना सुन लज्जावश सिह चुप हो गए। ) १७३ सदकट जातक २२० [ वत्दर तपस्वी का भेष बनाकर आराया था । वोधिसत्त्व ने उसे भगा दिया । ] १७४. दुन्वभियमदकट जातक [तपस्वी ने वन्दर को पानी पिलाया। वन्दर भ्रपने उपकारी पर पाखाना करके गया । ] १७४५ शभ्रादिच्चुपट्टान जातक २९२३ २२९, [ वन्दर ने सूय्यें की पूजा करते का ढोग बनाया । ] १७६. फठायमुद्दि जातक [ बन्दर का हाथ और मुंह मटर से भरा था, किन्तु वहू उन सब को गवा कर केवल एक मटर को खोजने लगा ।) १७७ तिन्दुक जातक [ फल खाने जाकर सभी बन्दर फँस गए थे । गाव वाले उन्ह मार डालते । बोधिसत्त्व के सेनक नामक भानजे ने भ्रपनी बुद्धि से सबको बचाया । | १७८ करच्छप जातक [ जन्मभूमि के मोह के कारण कछुवे की जान गई। | २२७ २३० रेड




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