सरस्वती चन्द्र | Sarasvati Chandra
श्रेणी : नाटक/ Drama
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9.2 MB
कुल पष्ठ :
250
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दुरर परिच्छिद
ननसइ टाउन
चुद्धिघनका छुदुम्ब 1
८.
हि नचन्द्र चरीचेसें गया । दू्खद्चने कोठरीसे ज्ञा जार -
इड्दड ् जलायी,मास-पास घप का शुन्यार देध गया | इसी
डी समय घोहॉको टापोंकि साथ गाड़ीकी गड़गड़ाहर.
! खुनाई दी । गाइीफी भाजज़ सुनकर सखंदसने जद्दी-ज्ददी अपने
दाथोंका सादा सुड़ाया पीर दरवाज़ेसे बाहर निकल, उदय
, उ्चककर भुप से छाठ हुई मालोंसे देखने लगा । उसने ऐग्ला'
कि अप्सरायोकि समान चार-पाँच सुन्द्री छ़ियाँ मत्द्यतिसे
' झन्दिरिकी सीडियोंको फार करके भीतर था रही हैं )
इस छोटेसे दछकी खुखिया दी रमणियाँ थीं । जो सपसे
बागे थी, उसकी अवस्पा उग-मग बीस चर्षच्ती थो भर उसव्यम
-अत्वेद जद यौचनके उसारसे पूरा गठा 'हुआ शान रही 1 उसकी
पुच्नीं बछककिशोरी थो । जो उसके पीछेगदि वह शिसेध शी फरती,
[शही थी, उलकी अचस्या पन््द्द-सोलहं थी 1. इन सब फारणों -
इहाराजंकी घिरल, किन्दु शीतल लहरोंमें युण छे, फि घट अपनेस
छवके पुत्र प्रमादघनव्दी नवोढ़ा स्री झुमुदूयी । इस प्रकार उत्मप्सं-
'मंलकक्शोरो ऐसे ज्ञा रही थी, जेखे कमीर परिज्च दिनसे फाम
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