परशुराम | Parsuram

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Parsuram by पंडित नरोत्तम व्यास - Pt. Narottam Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[च.] था । क्योंकि उन्होंने ज्ञान-गुरु चनते था सबे झेष्ठ कदलानेफे लिये, ब्राह्मण-चणंको पशुबढसे मेटना शुरू कर दिया था । वे इस पृथ्वीपर ब्राह्मण चर्णको रदने देनादी न चाहते थे । रजो शुणकों प्रघान सिंदासनपर बैठाकर, सत्वशुणकों उसका दास नददीं, चरन्‌ फाँसी देना 'वादते थे [ इस तरह सगवानकी सष्तिमें उस समय पूर्ण विकार पैदा दो गया था। घ्राह्मण मारे जाने लगे, अतपव संसारखे शानका भी छोप होने लगा। शानके छुश् दोनेसे शासनमें विश्दलछता जागयी । अज्ञानके शन्धकारने परमात्माकी दिव्यवाणी वेद जौर दर्शनोंको अपने आवरणमें छिपा लिया । अतएव सारे खंसारमें घिपमताके साथ थोर बिश्टल्नला भी फल गयी। यानी पूरे नाशके क्षण दिखाई देने, ठगे। ्‌ इस धघर्म-छानिसे धघर्मराजका आखन छिंगा । देवगणभी अवाद्वत हुए । अतपव उस ग्ठानिको दूर फरनेके छिये अमित पसक्रमी भगवाव परशु समका प्राह्मण-कुछमें जन्म हुआ. । विश्वामित्रकी पुत्र-वघु चिजया झवियोंके दाथों सतायी ज्ञाकर, राज-रानीसे प्रथकी मिंजारिणी दोकर, प्रतिर्दिसाखे पागछ थधनी, दर-दर मारी फिरती थी कि, इसी समय उसका परशुरामसे साझात्‌ गया । कुछदी देरके चार्ताछापक्े चाद चिज्ञयाने ज्ञान लिया, कि “मेरा भस्र थदी है। इसोसे में छानाचारी झत्रियोंका नाश कराऊंगी ।” उसने परशुराम अप- नी दुःख-गाथा कही, फिर अत्याचार-नस्त ब्राह्मणोंकी कुद्शाका घर्णन किया और समय-समयपर चदद घ्राह्मण-दितेषी क्षत्रियोंसे




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