परशुराम | Parsuram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.13 MB
कुल पष्ठ :
352
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[च.]
था । क्योंकि उन्होंने ज्ञान-गुरु चनते था सबे झेष्ठ कदलानेफे लिये,
ब्राह्मण-चणंको पशुबढसे मेटना शुरू कर दिया था । वे
इस पृथ्वीपर ब्राह्मण चर्णको रदने देनादी न चाहते थे । रजो
शुणकों प्रघान सिंदासनपर बैठाकर, सत्वशुणकों उसका दास
नददीं, चरन् फाँसी देना 'वादते थे [ इस तरह सगवानकी सष्तिमें
उस समय पूर्ण विकार पैदा दो गया था।
घ्राह्मण मारे जाने लगे, अतपव संसारखे शानका भी
छोप होने लगा। शानके छुश् दोनेसे शासनमें विश्दलछता
जागयी । अज्ञानके शन्धकारने परमात्माकी दिव्यवाणी वेद
जौर दर्शनोंको अपने आवरणमें छिपा लिया । अतएव सारे
खंसारमें घिपमताके साथ थोर बिश्टल्नला भी फल गयी।
यानी पूरे नाशके क्षण दिखाई देने, ठगे। ्
इस धघर्म-छानिसे धघर्मराजका आखन छिंगा । देवगणभी
अवाद्वत हुए । अतपव उस ग्ठानिको दूर फरनेके छिये
अमित पसक्रमी भगवाव परशु समका प्राह्मण-कुछमें जन्म हुआ. ।
विश्वामित्रकी पुत्र-वघु चिजया झवियोंके दाथों सतायी
ज्ञाकर, राज-रानीसे प्रथकी मिंजारिणी दोकर, प्रतिर्दिसाखे
पागछ थधनी, दर-दर मारी फिरती थी कि, इसी समय
उसका परशुरामसे साझात् गया । कुछदी देरके चार्ताछापक्े
चाद चिज्ञयाने ज्ञान लिया, कि “मेरा भस्र थदी है। इसोसे में
छानाचारी झत्रियोंका नाश कराऊंगी ।” उसने परशुराम अप-
नी दुःख-गाथा कही, फिर अत्याचार-नस्त ब्राह्मणोंकी कुद्शाका
घर्णन किया और समय-समयपर चदद घ्राह्मण-दितेषी क्षत्रियोंसे
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