संक्षिप्त सूरसागर | Sankshipt Sursagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(के यह आासा पापिनी दे । तक सेवा बैकुंटनाथ की नीच नरनि के संग रहे । लिनकी मुख देखत दुख इपश्व तिनकौ राजा-राय कहे । घन-मदु-मूढ़ति भमिमानिनि मिलि लोम किए दुर्वेधन से । मई ने कृपा स्पामसुंदर की झग कद स्वारथ फिरत चई 1 सूरदास सब सुख-दाता प्रमु्युन बिचारि नदिं चरन गद्दे २० इदि राबस को को न चिगीयौ ? दिरनरेसिपू, दिरनाष्द् भादि दी धन बुमिकरन बुख खोयो 1 कंस, केसि चादूर महाधल्र ऋरि निरवीब उमून-भज्ञ चोयी ! जश्व-समय सिसुपात सुजीभा भनायास लै यौति समोपी-। जइा-मददारदेव-सुर-सुरपति नाभत फिर मददा रस मीगी । सूरदास सौ 'परने-सरन रही सा जन निपर नींद मरि सोयी॥ मा फिरि फिरि पेसोई दे करत । लेसैं प्रेम पहंग दीप सी, पाषफ हू मे बरत। सब-ुख कप झान करि दीपक देखत प्रगट परत । कास-म्पाल रज-ठम बिपन््याला कत सह जंतु मरत । अधिदित बाइ-बिधाव सकल मत इन ल्षगि मेप घरत। इद बिधि ज्मत सकल निसि दिन गव ककछछू न काज सरत | अगम सिंघु खतननि सब नौ देठि कम भार सर्व । सूरवास-बत थे कृप्पा मणि, मत जलनिधि उतरत ॥ २६1) मापी मैंकू इटकौ गाइ। मत मिसि-वासर अपय-पथ अगद गदि नदिं जाइ 1 छृषपित अति मे अपमाति कपहें निरम-डूम दुलि स्वाइ 1 आअप्ठ इस पर मोर भंचवति दुपा हउ ने युम्धइ दी रस मी परी भारी तह ने गंप सुद्दाइ। और अदित अभग्ट मच्द्ति कला परनि मे थाइ |




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