संक्षिप्त सूरसागर | Sankshipt Sursagar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.82 MB
कुल पष्ठ :
586
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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यह आासा पापिनी दे ।
तक सेवा बैकुंटनाथ की नीच नरनि के संग रहे ।
लिनकी मुख देखत दुख इपश्व तिनकौ राजा-राय कहे ।
घन-मदु-मूढ़ति भमिमानिनि मिलि लोम किए दुर्वेधन से ।
मई ने कृपा स्पामसुंदर की झग कद स्वारथ फिरत चई 1
सूरदास सब सुख-दाता प्रमु्युन बिचारि नदिं चरन गद्दे २०
इदि राबस को को न चिगीयौ ?
दिरनरेसिपू, दिरनाष्द् भादि दी धन बुमिकरन बुख खोयो 1
कंस, केसि चादूर महाधल्र ऋरि निरवीब उमून-भज्ञ चोयी !
जश्व-समय सिसुपात सुजीभा भनायास लै यौति समोपी-।
जइा-मददारदेव-सुर-सुरपति नाभत फिर मददा रस मीगी ।
सूरदास सौ 'परने-सरन रही सा जन निपर नींद मरि सोयी॥ मा
फिरि फिरि पेसोई दे करत ।
लेसैं प्रेम पहंग दीप सी, पाषफ हू मे बरत।
सब-ुख कप झान करि दीपक देखत प्रगट परत ।
कास-म्पाल रज-ठम बिपन््याला कत सह जंतु मरत ।
अधिदित बाइ-बिधाव सकल मत इन ल्षगि मेप घरत।
इद बिधि ज्मत सकल निसि दिन गव ककछछू न काज सरत |
अगम सिंघु खतननि सब नौ देठि कम भार सर्व ।
सूरवास-बत थे कृप्पा मणि, मत जलनिधि उतरत ॥ २६1)
मापी मैंकू इटकौ गाइ।
मत मिसि-वासर अपय-पथ अगद गदि नदिं जाइ 1
छृषपित अति मे अपमाति कपहें निरम-डूम दुलि स्वाइ 1
आअप्ठ इस पर मोर भंचवति दुपा हउ ने युम्धइ
दी रस मी परी भारी तह ने गंप सुद्दाइ।
और अदित अभग्ट मच्द्ति कला परनि मे थाइ |
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