गुप्त - साम्राज्य का इतिहास भाग - २ | Gupt Samrajya Ka Itihas Bhag -ii

Gupt Samrajya Ka Itihas Bhag -ii by वासुदेव उपाध्याय - Vasudev Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुप्व-शासन-प्रणाली * ही सशालन किया करता या; केई भी व्यक्ति उसके कार्य में टंस्तक्षेप करने का साइत नहीं, कर सकता या । ' गुस-नरेश चक्रवर्ती राजा थे। लेखों में उनका विद्द 'महदाराजा- चिशज, परमेश्वर”, सिम्ार 2१, परमदैवत* तथा 'चक्रवर्तीन* ' ्ादि . मिलता है । इस साधाज्य का अस्तित्व नेक राज्यों के सड्ञठन से विद्यमान था। शुप्त नरेशों की प्रश्ुता सर्वत्र व्याप्त थी। लेखों में चारों समुद्र पर्यन्त यश-विस्तार का वर्रान मिलता हेंग |. गुप्त-सम्रारों ने श्रपनी समस्त प्रजा के आदर्श प्रणाली पर चलने तथा स्वधर्म में सीमित रहने का मार्ग दिललाया ६ ।. वे निश्चित रूप से समभते थे कि प्रजा के सुखी होने पर सजा भी सुखी दोता दे; उसको कीति बढ़ती है तथा स्वर्ग की प्राप्ति होती है | « इस धकार शुप्त नरेश झपने साधाज्य का शासन-प्रवन्ध मुचारु रूप से करते थे | चक्रवर्ती नरेश. के अधीन अनेक छेरे-छाटे सामंत रहा करते में 1 'उनकी पदवी प्हाराज! का मी उल्लेख मिलता है। इन सामंतों की आम्पन्तर नीति पर 'क्कंबर्ती रान्ना का केई संकुश नहीं रदतठा था |. सार्मत अपने राज-कान में स्वतंत्र रहते 'परन्तु उस बड़े शाठक की छुत्रदाया के श्रन्दर तथा आशा के श्रनुकूल श्राचरण करना पढ़ता था ।. गुप्त सम्राट भी श्पने श्रधीनस्थ शासकें से इसी प्राचीन नीति के अनुसार व्यवद्दार करते ये ।. समुद्रगुप्त ने दन्निणापय के शज्यां वे. जीतकर उन्दीं राजागों के लाटा दिया तथा श्रनेक श्रप्ट राज्यों को उसने पुग; स्यापसा की |. श्रनेक गणु-राज्य मी उसके प्रमुत्व के स्वीकार कर स्पतन्त्र रूप से शासन करते रहे | उन्दोंने राजसुद्रा से श्रक्धित गुप्त फरमान के स्वीकार किया या | सामन्त नरेशों में भी कई 'भ्रे शियाँ थीं । साधारण सामन्त-से विशेष अधोनस्थ शासक महारान या ' मदापामन्त कददे जाते.थे ।. इनके लेखों में भी *वादाजुष्यातो” (पैरों का अनुयायी ) विशेषण प्रयुक्त मिलता ,है जिससे इनकी अधीनता का परिचय मिलंता है.। . गुप्त-सम्रारों के झ्घीनस्थ चुन्देलखणड के परिजाजक तथा उच्चकल्म शासक ये जिनके अनेक; लेख उस घास्त में मिले हे । इन लेखों में गुसों की श्रधीनतान्यूचेक सामंत या महाराजा है, का? इ० इ० मा० ३ न० ४ २. बही-रडे३े । दे. दामोदरपुर उान्परत्र । ४, सुन ले० न० ६1 ब ५, “चनुसूपिसलिलासवादितयशर: 1*--फ्लीट-यु० ले० च० ४, १०, १३; कर्मदएडा का लेंस--ए० इ० गा० १०1 हा व्वनुस्दपिनजास्ता स्पीन पर्ययन्न देशान_-- जूसागद का लेख; शु० ले० न० देश ६, स्वघर्सावलितानाना विनोय स्थापपेसथि (--याव* शरद । ७. मजानुसे घुखो राजा तदुदुतखे यश्न .दुःखित: 1 स कीरियुक्तो लॉकरश्मिन,_ प्रेत्य स्वर मदीयनें ।--विद्यु ३1७० । <. *गरतारकुस्वविपयमुक्तिशासनयाचना ---प्रयाग को प्रराम्ति धुर ले? न० है 1 है. काब्,द० इन मानने स० रे, रद, रे * « #ँ




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