भारत के सप्त दुर्ग | Bharat Ke Sapt Durg

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Bharat Ke Sapt Durg by विश्वम्भर सहाय प्रेमी - Vishvambhar Sahay Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कार्लिनर दुर्ग ् राजा केदार ने ईरान के , शासक फेकाऊस ब खुसरों की 'आाधीनता स्वीकार करली । कर . राजा केदार से राजा शंकल ने यदद दुर्ग छीन लिया । शंकल का तूरान के चादशाहद के साथ युद्ध हुआ । शंकल '्पने पुत्र पुर्त को राज्य देकर तूरान चला गया | ईसा की तीसरी शताब्दी पूर्व से लेकर दूसरी शताच्दी पूर्व तक इस दुर्ग पर चन्द्रयुप मौये तथा झशोक का छधिकार रहा । अशोक ने चौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था । हुरग में इस समय भी चुद्ध की प्रतिमाये तथा दीद्ध कालीन 'अन्य प्रतिमायें व्यादि विद्यमान हैं। मोयें बंश के पश्चात्‌ यह दुर्ग कुशान चंश के राजा कनिष्फ के अधिकार में छाया । उनका शासन काल सन उर इई० के लगभग था । सन्‌ २४६. ई० में कृप्णुरातत कलचुरिया दिदय बंशी से कालिंलर पर/विजय प्राप्त की थी । कृप्णराज के चाद चन्द्र श्री कालिंजर का राजा हुआ निसे हराकर चन्द्र ज्र्म ने कालिंजर को छापने ्धिकार में कर लिया । इन्होंने दुर्ग की मरम्मत भी करवाई थी । ये चन्देल चेशी राजा थे।। इलाहाबाद फिले के मीटा स्थान से श्रमी छुछ समय पूर्व एक मोहर (सीन) प्राप्र हुई थी सिममें सुपर यालीन लिपि में 'कालबनरः मट्रारकस्य” शब्द झंकित है नथा उसपर पर्वत पर शिवलिज्ध भी अंकित दै। उससे प्रगट दोता दे कि किसी समय फालिव्जर के किसी शिर मन्दिर 'पधिकारियों ने इसझा प्रयोग किया दो 1 ८३६ ई० में कालिव्जर मंदल प्रतिद्दार वंश के राज्य में




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