क्रांति चिरजीवी हो | Kranti Chirjivi Ho

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Kranti Chirjivi Ho by विश्वम्भर सहाय प्रेमी - Vishvambhar Sahay Premi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मम यू 1 ४ न पु | | बी ं ह |): दफन, मत . री | 1) नम लक पड श् धर । 1 1 लि! के डी दर दर ् भा शान अर जीप, व्का कक पद हंटान्क्ट्रा सवयुवक जेलें की बेरक मे बन्द था । गौर वश, गठीला शरीर, लम्बे लग्वे काले बाल | थे सच जसकी शारोरिक समत्ति थे । चिचार उम्र थे । बह श्रपने छाप को क्रास्तिकारी समभाता था । शापने देश की स्वतन्त्रता की झग्नि में पढ़कर वह छस्दन बनने की यरने कर रहा था । जेल की 'घार दीवारी में भो उसके स्वतस्तर विचार क्रिया- शील हो उठे । उसे स्परण से रहा कि बह १॥| बंप के कठोर कारन चास का समय ब्यतीत करने वाला एक मन्दी हैं । मस्तिष्क में विचार 3ठे । मावनायें जाणत हो उठी । दगीठी का जला कोयला उठाकर उसने बेरक की लगी दीवार पर लिख. दिया. 002 1198 पिनस्ण प्रति , क्राति चिरनीवी हो | युवक मुश्करामा । उतने उपरोक्त पत्तियों को श्पनी अआराध्य देपी मान लिया । दोनो हाथ मस्तक पर लगाये । भड्धा से दीवार की फाली पंक्तियां को नमस्कार किया | छोटी सी कोटरी में साठूभूमि की वंदना की श्रौर एक पद सुश्काम के साथ काला कम्बल विल्ला उस पर सादी की फटी घीती ढाल बेठ गया । भ्द नर न




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