नागरीप्रचारिणी पत्रिका भाग 7 | Nagripracharni Patrika Bhag 7

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Nagripracharni Patrika Bhag 7  by पूरण चन्द नाहर - Puran Chand Nahar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र .-प# रा का पूछा कि यह भोजन धर्मोनुयूल है 'अयवा नहदीं। रन्दोंने कदा-- सैश्य चौर श्राह्मण के लिये सो ठीफ दे; परंछु ऐसे चश्रिय के लिये, जिसने अभक्ष्य न खाने का नियम फर लिया हो, ठीक नहीं दै; क्योंकि इससे पिशितत आद्दार पा 'अनुस्मरण होता दे । तदनन्तर राजा ने पूर्व मित अमइयान्न फा प्रायश्चित पूछा । देसचन्द्र ने फद्दा-३९ दॉत हैं, जिनफे द्वारा यदद खाया गया; 'अतः एक एक दॉत का एफ एफ विद्दार यनवा दौजिए । राजा ने सूरिजी फे 'झादेशानुसार ३२ घिद्दार धनवा दिए । पर यह कथा भी फटिपत प्रतीत द्ोदी दै.। तो भी कुमारपाल की जैन-घमे के प्रति भक्ति के दो एक 'औौर उदादरण सुनिए । राजा बनने के पदले जब छुमारपाल सिद्धराज के द्वेप से एक स्थान से दूसरे स्थान को भागता फिरता था, तब एक दिन जंगल में एक युक्त की छाया के नीचे बैठ गया | इसने देखा फि एक चूहा झपने बिल में से मुँह में दबाकर एक रुप्पनाणक (रुपया) लाया और बाहर रख गया । वद्द फिर दूसरा रुपया लाया । इस प्रकार एक एक करके २१ रुपए बाददर रख गया । तदनन्तर उनमें से एक मुँद में उठाकर बिल के अंदर 'चला गया । इसी बीच में छुमारपाल ने, जो 'चुपके से यद्द दृश्य देख रहे थे, शेप २० रुपए घठा लिए 'और छिप गए । 'चूददे ने बिल से निकलकर जब 'अपना घन नहीं देखा, तब वह इतना पीड़ित हुआ कि हुरंत मर गया । छुमारपाल भी इस घटना से बड़े व्याकुल हुए । अब चन्ददोंने सूरिजी से उस पाप का प्रायरिचित्त पूछा 'और उनके 'झादेशानुसार एक मुष्टिक बिहार बनवा दिया । सपादलक् देश में कोई सेठानी केश संमार्जन करा रददी थी । उसने अपने सिर में से निकली हुई एक जैूँ सेठ जी को दे दी । सेठ जी ने चस पीद़ा-कारिणी जूँ को हाथ में लेकर उसे तजेना कर देर तक मसलकर मार डाला । किसी श्वमारिकारी पंचकुल ने उसे देख लिया '्और पकड़ कर पाटण ले गया । राजा के पास सुकद्सा पहुँचा । एन्दोंने देमचन्द्र




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