युगप्रवर्तक विवेकानंद | Yugpravartak Vivekanand
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.72 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुगप्रबतेक पियेवानन्द कुक
साथ घोड़ा गाडी में घूमने सिस्ता। दिला ने पृद्ध-ीरिले, दयदा दोरर
कया मनेगा, यता 1”?
सिलि में मिर उठाकर उत्तर दिया-एमैं साईस या कोचयान बना 1”
जरी की पगर्टी पढ़ना ढुआछा कोचयान नरेन्द्र के सामने एक पिर्सयनलनक
व्यक्ति या । वेगयान् दो तेजस्वी द्रर्धों थो संयत रसरर चलाना क्या मामूली
बात दै १
जचपन से ही गरीय दुमी, साधु-सन्यासी के प्रति सरेन्द्रनाय का विसेष
श्ाक्फण था । गरीय देखते दा कोई दूसरों बस्तु न पाने पर बह य्पनी
पहनी हुई थोती हा सोलउर दे देते थे। द्ीर उसी से उन्हें परम ठूमि
मिलती यो 1७ समयन्समय पर वौपीन पटनकर सन्यासी बनना यदद पसन्द
बरसे थे 1
माँ के सुख से रामायण की कथा सुनकर नरेन्द्रनाथ को राससीता के
प्रति पी भक्ति उत्तन हुई थी । याजार से साताराम वो मूर्ति खरीद लाकर छत
के ऊपर की छोटी कोठरा में वद एकान्त में पूजा रिया करते थे 1
घर में यहुत्त से पालतू पक्षी, वररे, मयूर, काकलुशा, वद्तर, विलायती
सफेद थूद तथा एक कुधार गाय शाहिद ये फिर एक चस्टर भा था 1 दो
तज़ घोड भी थे । समी से नरेन्द्र का चुत स्नेद सम्बन्ध था । साईस तार
बोचदाय् इनके थ्न्तरग सिंध थे ! अनेक अकार के सुग्न दुःख के बारलालाप
इनसे होते थे । एक्टिन साईस ने का, पिया करना यठी प्रिपत्ति का
काम है, पिवाद मे दूसरे टिन से ही मेरे घर में श्रशान्ति ओर दुशव का
कस्दामी जा ने अमेरिका से एक पत्र में लिखा था--“'नदीं, से लदन
जिज्ञातु नहीं हूँ, दारानिक भी. नदी हूँ 1 नड़ीं. नदों, मे साघु भो नहीं हूँ ।
मे गरीब हूँ बोर गरीबी को से प्यार करता ।” वे शथ्दी पर के सारे गरीबों
के लिए थाँसू बद्दात थे। गरीबों का कन्याण-साधन हा उनके जीवन को
शर्ट घत रहा ।
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