ब्रह्म विज्ञान | Brahm Vigyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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के विपय ३ समप्टि महावाश मण्डल के सूक्ष्म रूप मे ८४. समप्टि मह्ावाघ मण्डल के श्रत्वय रुप सा ४५ समप्दि महावाश मण्डल के अ्रयंवर्व रूप में चित्र सण्या १४५--सर्वेप्रयम प्रकृति से महाकाश दिशा, काल की उत्पत्ति वया ईइवर में ज्ञान कर्म हैं । सप्तम खण्ड (चरमावरण तु) समप्टि बारण प्रदृति शरीर उसके रूपों में ब्रह्म विज्ञान १ समध्टि वारण प्रहृति के स्थल रूप में जीवों के बर्मफल की व्यवह्या दिन सम्पा १६--समप्टि प्रइतिं से ज्ञान और प्रिया की उत्पत्ति ब्रह्म का महत्प निरावार ब्रह्म का दर्शन २. समप्टि कारण प्रति ये स्वरूप में प्रडूति वी साम्यावश्था का प्रत्यक्ष चित्र सदा १७--प्रइतति को साम्यावस्था में ब्रह्म के रायोग से सूक्ष्म शिया ५. समम्टि बारण प्रकृति के श्रयवत्व रूप में मुक्ति के लिए परम्वराग्य विनर सख्या १८--म्रह्म से समप्टि पूथिवो मद्दामूत पयंस्त ३४ पदार्थों वा स्वरूप प्चमाध्याप: मोक्ष ग्रयवा कंवल्य श्राचार्यों की मान्यतारयें ब्रहमनोक में चार प्रकार की मुक्ति सालोव्य, सारूप्य, सामीप्य, सायुज्य बोवल्य का स्वरुप हमारी मान्यता कंवल्य में ब्रह्मानन्द वा झभाव मुक्ति की झनित्यता मोक्ष ब। स्वरूप मोक्ष मे ्रानन्द का श्रमाव मोक्ष थे सूक्ष्म शरीर का ममाव जीवात्मा में ब्रह्म व्यापव नहीं । झात्मा सौर प्रकृति की सूदमता में सत्तर प्रकृति झनादि नित्य है । सर्वेव्यापक चेतन तत्व ब्रह्म ब्रह्मलोक में श्ान्द को प्राप्ति स्वर्ग में झनत्द का उपभोग पृष्ठ 'द्द चिप ८ अइम-दट पड० इन दीभुद्दू दीप दध हक दद- एप 'ढद७ पद उर्ट प्र ० 'दप्ु०नोदु रु श्र मे ५६ ४4७ अप७ ५१६ ध्द नू£ ५६ ६ दर भर ध ्् भी . ४६७ भद्द ६ दे छोड हक ७६




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