स्वप्न दर्शन | Svapna Darshan

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Svapna Darshan by श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वप्न-दशन ध्यारम्भिक कालसे ही यद्द चिइवास चला आ रहा दे कि स्व निद्राकोंलकी कोई आकस्मिक घटना नहीं हे, बल्कि वह्द निश्चित अर्थ रखता है। आदिम साहित्यम स्वप्नॉकी व्यारया बहुत ही प्रमुख स्थान रखती थी ! पुरानी वाइविछमे असंदिग्ध रूपसे यह मान लिया गया है कि “फारा” छोर उनके नोकरों के स्वप्न तथा इसी प्रकारके अन्य स्वप्न लिव्चित 'झर्थ रखते हैं । ग्रायः सभी जातियोंमे स्वप्न-मीमासा की निश्चित पद्धतियों उत्पन्न हुईं, जिनके अनुसार प्रस्यफ स्वप्नचित्रका एक विशेष झर्थ होता था और प्रायः सभीके सादित्यमे, जिसमें हमारा साहित्य भी शामिल हे,ऐसे स्वप्त-प्रन्थ हैं जिनमें ये अर्थ दिये हुए हैं। जब कि “फारा' के पण्डित लोग उसके उन स्वप्नों - का 'र्थ जिनमे उसने सात मोटी ओर सात डुबली गायोंको तथा अनाजकी सात भरी हुई ओर सात भुठसी हुई थालोंको देखा था, उस समयकी प्रचढित परम्पराके आधार पर नहीं कर सके थे, तभी वह इतना चितित हुश्मा था कि उनकी ब्यास्याके लिए एक विदेशीको कारागारसे निकालना पड़ा था। तत्कालीन घारणाके अनज्लुसार जिस “व्यारयाकी 'आशाकी गयी थी औओर जो व्याख्या की गयी बद्द भविष्यवाणीके प्रकार- की थी । स्वप्नोंको भविप्य-कथनका सावन समझा जाता था | उनके द्वारा लोग भविष्यकी व्यारया करना चाहते थे। स्वप्न अचूक भविप्यद्वक्ता समके जाते थे । जो व्यक्ति उनकी ब्यारया कर सकता था उसके पास भविष्यकी पहेलीको दल करनेफी, कुंजी थी। सभी श्राचीन जातियों स्वप्नको बड़ा महत्त्व देती थी ौर उन्द्दे व्यावद्दारिक उपयोगकी घस्तु समकती थीं । युनानियोंके छिए कमी कमी घिना स्वप्न-मीमांसिकके किसी यात्रा या आाक्रमणका आरम्भ करना ऐसा अचिन्त्य हो जाता ख




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