सनातन धर्म का उपहार व्याकरणमाला | Sanatan Dharma Ka Uphar Vyakaranmala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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द सनातनघभ की महिमा ) प्‌ करता है उत्तप्तय तुप डोउा आना, मैं बहू की विदा करदूँगी । चुसों दिन जन हुछप्तीदाप्त हनान भादि करने के छिये यमुनाभी को ष्डेंगये, उप्ती समय उनकी माताके कहने के अनुसार तुलसीदास की पुप्तरलवलि आकर वहुकों छिवछिगये । इघर तुरूसीदासनी सान आदि से निवटकर दचेपर घुठाहुई घोती, हाथ में जठकी झारी लैडर एक पीताम्बर पाहिनेहुए आये, सो पढ्छे तो उन्होंने घर में स्व: देखा, पान्तु नग सी परमें कहीं न दीसी तम मौनासे वूसा-उसने पीदर को सेनदने का वृत्तारत सुनाया, इस वात को सुनते दी हि: प्रकार गैंगघड़ेंगे कंयेपर घोते। डाठे सौर हाथ में लड़की झारी छिये ही सास के घएको 'चछदिये, उनको इपवात का कुछ ध्यान नहीं था कि--में मागे में में नंगाही किप्त दूश्ा में लारहा हूं सार सपादा लगाये छुए श्वपुर के घैर- की भे।र के 'चछादिये । उनको मरी रह्तीने ऐसा नकडफर नॉधलिया था कि-छोककज्ना और प्रतिष्ठा क' कुछ भी ध्यान नहीं रहा रू इस निप्कपट प्रेम को देखकर परमदूथालु मक्ततत्सछ झप!मसुन्द्र परमात्माने दुयाछु » सन्ते:करणमें विचार किया रि-इसका ऐसा यह निष्कफट मेम यदि मुझ में होनाय ते। इप्तका कितना उपकार हे। | अच्उा ते, इ मफे इस प्रपकों सच अपनी भोर खचकर इसके ऊपर भनुयह करें: , श्पर सो भगवान्‌ का ऐसा सकुरप दुआ, उधर तुलप्रीदाप्तभी के श्वशुर के घर पहुँचते दी, तहूँ सात भादि चने नामाताकों ऐसी दशा देखकर विचार कि-यह जो ऐसे नंगे है। चले अे है सो इन की माता चूढी थी चहू कहां परछोकक तो नहीं सिधारंग६ £ इसकारण लोकरीति के समुत्तार वद्द सब सपने नेत्रों में भौसू मरलयि । इघर तुर्सीदा सजी. मी ' मुझे देखते हो इनके नेत्नों में भौसू मरभाये, सो कहीं मेरी प्रिय स्री वा तो कुछ जधुम नहीं होगिया १ * ऐसा मन में विवारकर रोने कंगे; इसपरकार एकायकी रोदन मचनानिपर दाष्ठी ने इन की सी को नह




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