सनातन धर्म का उपहार व्याकरणमाला | Sanatan Dharma Ka Uphar Vyakaranmala
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.28 MB
कुल पष्ठ :
179
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द सनातनघभ की महिमा ) प्
करता है उत्तप्तय तुप डोउा आना, मैं बहू की विदा करदूँगी ।
चुसों दिन जन हुछप्तीदाप्त हनान भादि करने के छिये यमुनाभी को
ष्डेंगये, उप्ती समय उनकी माताके कहने के अनुसार तुलसीदास
की पुप्तरलवलि आकर वहुकों छिवछिगये । इघर तुरूसीदासनी सान
आदि से निवटकर दचेपर घुठाहुई घोती, हाथ में जठकी झारी लैडर
एक पीताम्बर पाहिनेहुए आये, सो पढ्छे तो उन्होंने घर में स्व:
देखा, पान्तु नग सी परमें कहीं न दीसी तम मौनासे वूसा-उसने
पीदर को सेनदने का वृत्तारत सुनाया, इस वात को सुनते दी हि:
प्रकार गैंगघड़ेंगे कंयेपर घोते। डाठे सौर हाथ में लड़की झारी
छिये ही सास के घएको 'चछदिये, उनको इपवात का कुछ ध्यान
नहीं था कि--में मागे में में नंगाही किप्त दूश्ा में लारहा हूं सार
सपादा लगाये छुए श्वपुर के घैर- की भे।र के 'चछादिये । उनको
मरी रह्तीने ऐसा नकडफर नॉधलिया था कि-छोककज्ना और
प्रतिष्ठा क' कुछ भी ध्यान नहीं रहा रू इस निप्कपट
प्रेम को देखकर परमदूथालु मक्ततत्सछ झप!मसुन्द्र परमात्माने दुयाछु »
सन्ते:करणमें विचार किया रि-इसका ऐसा यह निष्कफट मेम यदि
मुझ में होनाय ते। इप्तका कितना उपकार हे। | अच्उा ते, इ मफे इस
प्रपकों सच अपनी भोर खचकर इसके ऊपर भनुयह करें: , श्पर
सो भगवान् का ऐसा सकुरप दुआ, उधर तुलप्रीदाप्तभी के श्वशुर के
घर पहुँचते दी, तहूँ सात भादि चने नामाताकों ऐसी दशा देखकर
विचार कि-यह जो ऐसे नंगे है। चले अे है सो इन की माता चूढी
थी चहू कहां परछोकक तो नहीं सिधारंग६ £ इसकारण लोकरीति के
समुत्तार वद्द सब सपने नेत्रों में भौसू मरलयि । इघर तुर्सीदा सजी.
मी ' मुझे देखते हो इनके नेत्नों में भौसू मरभाये, सो कहीं मेरी प्रिय
स्री वा तो कुछ जधुम नहीं होगिया १ * ऐसा मन में विवारकर रोने
कंगे; इसपरकार एकायकी रोदन मचनानिपर दाष्ठी ने इन की सी को
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