श्री दशवैकालिक सूत्र का हिंदी अनुवाद | Shri Dashvaikalik Sutra Ka Hindi Anuvad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्तावना ७ ननाणण जैन अआपमों में दशवैकालिक सब मूलसूत्र तरीके माना जाता है । आगम साहित्य (सवे० मू० तथा स्त्रे० स्था० के मान्य) के अग, उपाग, मूल तथा छेद ये चार विभाग हूं । इन सयकी सख्या ३ और एक आवश्यक सूब इन सयको मिलाकर छुल ३२ सत्र, सर्वमान्य हूं । उस मैं से मूल विभाग में दयवैकालिक का समावेश होता है । शआचाराग, सूयगडाग आदि १२ सू्रों की गणना अअग विभाग में की जाती दे किन्तु उनमें से “दृष्टियाद” नामक एक सश्द्ध एवं सुन्दर झग सुन आजकल उपल-्ध नहीं है इसलिये छुछ ११ ही अग साने जाते हैं । उवयाई, रायपष्ठतेणी इत्यादि की गणना उ पाग मैं; उत्तराध्यंयन, दशवैकालिक आदि की गणना मूल में शरीर व्यवद्दार, घूहत्कट्प श्रादि की गणना छेद सूत्रो में की जाती दे । शग एवं उपागो में जैनपर्म के मूलथूत सिंदान्त के सिवाय विश्व के जय श्रावश्यक तं्वों, उदाइस्ण के लिये जीब, अजीब (कर) तथा उसके कार्य कारण की परपरा एवं कमेत्रथन से मुक्त होने के उपाय आदि का सो ख़त ही विस्तृत चीन क्या गया है । मूल (१९)




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