भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्त्व | Bharatiya Sanskriti Ke Moulik Tattva
श्रेणी : भारत / India
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.1 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्द भारतीय सस्कृति के मौलिक तत्व
आधुनिक विश्व के शक्तिशाली राष्ट्रों ने अशक्ति का थाविष्कार किया
है । सीस्कतिक्र दृष्टि से यह कितनी निन्दास्पद बात है कि शक्ति का प्रयोग मातव
की उच्नति के लिए से क्या जाकर उसके विनाश दे लिए निया जाप । विज्ञान
आज उचपति के चरम थिलर पर पहुँच घका है और अनेक आविप्कारो ने
मानव-जीवन की सुखसूविधा के साधनों में पर्याप्त बुद्धि भी कर दी है। पारम्त
इन सबसे भौलिकता की द्रवत्ति मे, जो अमूनपर्षे वृद्धि हुई है और आध्यात्मिकता
छा जो ह्लास हुआ है, उससे मानव जीदन की शाग्ति और सरभा तथा पार-
श्परिव सदभग्यना को भय उत्पन्न हो गया है । ऐसी अवस्था में यह आवश्यक
है कि विश्व को पुन एक परिवार मे देखने का प्रयत्न किया. जाय '“वसुधैव
बुटुस्बकम' का यह पाठ भारतीय सर्कति के अतिरिक्त और कहाँ से पढ़ा जा
सकता है ?
इस प्रकार यों तो सम्पूर्ण विश्व के लिए ही यह हितप्रद होगा कि भारतीय
सरकूति के उत्युप्ट आाद्ों का प्रचार व प्रसार हो परन्तु भारत के लिए उनका
विशेष महत्व है । भारती राष्ट्र मे सर्थागीण विकास की आवश्कता हैं । अनेक
वर्षों के पारतन्ण्य के पश्च ते “व हमें रवत त्रना प्राप्त हुई है तो उसके साथ ही
अनिव अभाव भी हम अनिर्वत प्राप्त हुए हैं । सच तो यह है कि किसी भी देश पर
जब विदेशी शासन दुढ़ता से स्थापित होता है तो सस्कृति का ह्ास प्राय होता
ही है । सैकड़ों वर्षों की दासतहा में, हम स्वय अपने सदादर्शों से पीछे हट गये
हैं और आज की परिवतित परिश्थितियों में पुन उनके मूत्याकन की आवश्य-
बता है । योरोपीय सरकृति के प्रभाव से हम भी कुछ उसी परम्परा में सोचने -
विचारने और विचरने लगे हैं 1 यहाँ तक कि आध्याश्निकता और नैतिकता, जो
हमारी सर्कूत की_प्रधान निधियाँ हैं धीरे-घीरे क्षीगप्राय होती जा रही हैं,
इस राव का परिणाम हमारी सुखशास्ति का जिरो यान दे 1 डा० राधाकृष्णन ने
महा है-' भारत वा ही नहीं, गम्पू्ण दिव को यह दुर्भाग्य है वि हम आाध्या-
द्मिकता पो सर्वे मूलक ९ भौतिवना के पीड़े भाग रहे हैं । विश्व में शान्ति
बौर वाश्तविद सुख वी वृद्धि के लिए आध्यात्मिकता तथा बेतिकता का आश्रय
सेना अभोष्ट है 1!
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