राजा निरबंसिया | Raja Nirbansiya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.85 MB
कुल पष्ठ :
259
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अपने प्रति अमन्तोपते पठताता होता । यदि वह कोदिश भो करता तो
साहस न. पड़ता ””'क्योकि उस घड़ो ओर उसको सोनेकी ज जोरमे उसके
पिहाका इतिहास जुड़ था, जो कही स्टेशन-मास्टर थे और यर्पोति दूसरी
शादी करके अरने वाल-उच्चोके साथ रह रहे थे । उसने सिफ इतना सुना
था कि पाँच बे पहले वे कुछ घण्टोके लिए मामे मिलने आये थे । तत्रं
दूसरी शादो कर चुके थे । माने कहोंसे उधार लाकर उनके लिए खाना
बनाया था, पर उन्होंने साया नहीं था । उस वरत पडोसकी ओऔरतोने माँ-
से कहा था कि अपनों और देवाकों परवरिशके लिए कुछ माहूवार ते कर
लेना धाहिए, पर मांते बह बात हो नहों उदायों । घठते बदन पितानें
माँसे कहां था कि घड़ीको जरूरत पड़ जातो है कमो-कभी, उसे दे दो तो
छेता जाऊं । तो माने जवाब दिया था कि यहीं एक चीज पास रह गयी
है जो देवाको भी उसके वबतका ज्ञान कराती रहती हैं । हाँ, यदिं सोनेकी
जंडीरको जरूरत हो तो बह ले छें । पर पिताने वात खुल जातेके कारण
आर घड़ी माँगनेके पीछे जडोरको असलो ख्वाहिश ज़ाहिर होनेके कारण,
आए बात नहीं बद्दापो यो और बे गये थे ।
उनके जानिके वाद बगलके मकानकी वूद़ी वातोका पता लगाने आयी
थी, कदोकि उस दिन सभी घरोमे यहीं चर्चा थो”पीछे-पीछे देवाकी मॉकी
बुसइयीं भो बड़ी ईमानदरीसे बयान को जा रहो थीं और उससे मो
चप्रादा ईमानदारी और चिन्ताते उसकी सहनशक्ति, सम्ठोप और मुसी-
गदोकों दोहराया जा रहा था । वृद्धा आकर वहाँ बैठी और उमने पूछा
था, “क्यों देवूकी माँ, बात-चोतका कैना रदेया था उनका ?””
**बेसा ही था चाथी, सचमुच कोई फ़रक नहीं था “में तो समझी थी
कि पता नहीं कैसे पेश आयें, पर युभाव नहीं बदला । तनसे तो एर्इम
बदल गये हैं। में तो पहलो नजरमे पहचान नहीं पायों, बभोसि सामने-
देवाकों माँ थ्जू
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