मनोविज्ञान माला 10 हमारे जीवन का अर्थ भाग 3 | Manovigyan Mala- 10 Hamare Jivan Ka Arth Bhag 3

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वप्न श्र प्यार में बिगड़े चच्चों का समूचा मनोविज्ञान-मात्र है, जो यह '्रनुभच करता है कि उसके श्मस्तर की करामनाश्रों को कभी भी भअपूणण नहीं रहना है, जो दूसरों की जीवन-मत्ता तक को 'अपने लिए श्वन्यायपूर्ण सममता है, जो सदा यही पूछता रहता है-- “मे अपने पढ़ोसी से क्‍यों प्रेम बम्दें ? क्या मेरा पड़ोसी भुमसे प्रेम करता है ?” मनोविश्लेपफ लाइ-प्यार से बिगड़े मे वच्चों के श्ध्ययन से 'प्रपना पाठ श्ारम्भ करता है श्र इसी विपय पर सुधिसतूत घिवेचना जारी रखता है। परन्तु आरमसन्तुष्टि की 'प्रभिलापा श्रौर उसके ठिए प्रयरन तो श्रेप्ठ धनने के इन लाखों प्रयत्नों में से एक ही है श्ौर हम इसीको किसी व्यक्तित्व की सभी अभिव्यक्तियों का मौलिक ध्येय नहीं मान सकते। यदि वास्तव में हमें स्वप्नों फे उद्देश्य का पता चल दी ज्ञाय तो यह यात जानने में भी हमें श्रास्यनी दो जानी चाहिए फि स्वप्नों को भूल जाने से अथवा इन्हे न समझ सकने से क्‍या श्रभिपराय पूरा होता है । कोई पच्चीस वर्ष पहले लव मैंने स्वप्नों का श्र्थ समझने का शयरन शुरू किया तो मेरे सामने यहीं सबसे पेचीदा सवाल था । में यह सममता था कि स्वप्न का जागृति-काल के जीवन से कोई विरोध नहीं हैं; श्रावश्यक रूप में इसका लीघन की दूसरी गतियों श्र 'अभिव्यक्तियों से मेल होना दी है । यदि दिन के ममय दम श्रेप्ठना के ध्येय की श्रोर प्रयत्नशील रहते हैं तो रात को भी इसी समस्या से उलमते रहते होंगे। प्रत्येक व्यक्ति का इस तरह स्वप्न देखने हैं जैसे कि स्वप्न देखकर कोई कतेंव्य निभ रहा हो, जैसे स्वप्नों में भी उसने श्रेप्ठता के ध्येय की शोर अपसर होना हो। इन स्वप्नों को अवश्य ही जीवन-प्रणाली की उपज होना है. 'औौर इनसे जीवन-प्रणाली के निर्माण में तथा उसको वार्तदिकता में बदलने में सद्दायता मिलनी 'चादिए।




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