हमारे जीवन का अर्थ भाग 5 | Hamare Jeevan Ka Arth Bhag - 5

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Hamare Jeevan Ka Arth Bhag - 5 by डॉ. अल्फ्रेड एडलर - Dr. Alfred Adler

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्द सारे जीवन का अथे की बात दे कि यदि हर अपराधी के क्यों की गहरी छानबीन की जाय तो मुझे विश्वास है कि वह कुछ ऐसे अपराध भी कर चुका दे जिनका पता नहीं चला यह बात बड़ी दुखदाई है। जब आखिर वे पकड़े ही जाते हैं तो सोचते हैं-- इस बार मैं अधिक चालाक सिद्ध नहीं हुआ किन्तु अगली बार में अवश्य इन्हें घोखा दे सकूँगा । यदि वे इसमें सफल हो जायँ तो सोचते हैं कि उन्होंने अपना लक्ष्य प्राप्त कर लिया वे श्रपने को उच्चतर अनुभव करते हैं और अपने साथियों से प्रशंसा और श्लाघा पाते हैं । आवश्यक है कि हम अपराधी की वीरता और चालाकी के इस अलुमान में विक्षोभ उत्पन्न करें । परन्तु ऐसा कब किया जा सकता है ? हम यह परिवार स्कूल अथवा सुधार-गृद्दीं में कर सकते हैं। में इस पर हमला करने के सर्वोत्तम तरीके का चणन पीछे करूँगा यहाँ तो उस वातावरण पर अधिक विचार करन चाहता हूँ जिसमें सहयोग की भावना असफल रद्द जाती है। कभी-कभी इसका उत्तरदायित्व माता-पिता पर भी डाला जा सकता है । सम्मवत माता इतनी चतुर नहीं थी कि बच्चे का सहयोग अपने तक आकृष्ट कर सकती शायद वह अपने को इतना सम्पूण समसती थी कि उसे कोई सहायता नहीं पहुँचा सकता था अथवा वह स्वयं सहयोग के लिए असमथ थी । यह समभकना आसान है कि दुखी अथवा भग्न विवाइ- सम्बन्धी में सहयोग की भावना का विकास ठीक ढंग से नहीं होता । बच्चे का प्रथम सम्बन्ध अपनी माता से होता है सम्भ- बृत माता बच्चे की सामाजिक दिलचस्पी को पिता तथा दूसरे बच्चों दौर -.न्य वयस्कों तक बढ़ाना नहीं चाहती थी । अथवा यह मी सम्भव हो सकता है कि बच्चा अपने को सारे परिवार का स्वामी अनुभव किया करता था । उसकी तीन अथवा चार वर्षे की




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