राजपूताने का इतिहास भाग 2 | The History Of Rajputana Vol.-2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[१४ | मन्थकता का राजपूतकाल की घटनावली पर विस्तृत विकार, व्यापक दृष्टिकोण तथा छाध्ययन क लिये चुन हुए इस काल की अन्तरास्मा के मम तक पहुँचने चाली उनकी भअन्तर्दष्रिं का पूणरूप स परिचायक हु । हम इस यन्थ की कुछ मुख्य-मुख्य उन विशपताश्रों का, जिन्हें पाठक इस थ मे पायेंगे, यहाँ सचाप से उल्लेख कर देना चाहते हे | इस अन्थ मे, प्रत्येक रेशीराज्य से सम्चन्ध रखने चाल ग्तिहासिक, जातीय तथा भागालिक तथ्यों के साथ दी साथ राजपूतान कं भिन्न समिन्‍न राजघरानों के वशपरम्परागत रीति रिवाजों तथा प्रथाञ्मों का वर्णन भी लेखक न सरल तथा स्पष्ट भाषा में किया है | ग्न्थकर्तता ने चड़े परिश्रम से राजपूतान के अनक राजवशों तथा उनसे निकले हुए चशों की उत्पत्ति तथा पारस्परिक सम्वन्वों के विपय मे बहुत सी क्ञातव्य वातों क। इसमें स यह किया हु एव राजपूताना के निवासियों की '्यार्थिक, ससा- जिक तथा शिक्षा सम्बन्धी अवस्था पर भी प्रकाश डाला हू । राज पूतान के सिन्‍न मिन्‍न राज्यों तथा भारत-सरकार के वीच समय समय पर जो सन्धिपत्र तथा घ्यहदनासे लिख गये हैं उनका थी उल्लेख पाठक इस ग्रन्थ में पायेगे । ये सन्धिपत्र वर्तमान राजनैतिक इतिहास के चिद्यार्थियों के लिए विशेपरूप से उपयोगी हैं । राजपूताने के अनेक राजाओं; प्रसिद्ध पुरूपो; निवासियों, प्राकृतिक दृष्यो, ऐतिः दासिक दार्गों तथा स्मारकों के भी वहुसख्यक चित्र इसमे देवेने से प्रन्थ का सहत्व ब्यौर भी बढ गया हैं । इस सभी बातों को दृष्टि में रखकर हम श्रीयुत गहलोतजी की इस सुन्दर तथा प्रसास-पुप्ट कृति को इतिहास-प्रेमी जनता के सामने उपस्थित करते हैं ्और इस उपयोगी रचना को सादर अपनाने का अनुराध करत हैं । राजपूताने के देशी राज्यों के विपय में श्रमाणिक अ्रन्था के अभाव का जा अनुभव पाठक झब तक करते रहे है व उसकी वहुत कुछ पूर्ति इस श्न्थ के रूप में पायेंगे । - त में हम इस प्रशसनीय उद्योग तथा इस सफल रचना के लिये श्रीयुत गदलातजी को बधाइ दत हूं। हम ्ाशाो हे किवे इस यन्थ का उत्तरा्ध स्वरूप दूसरा भाग भी शीघ्र प्रकाशित करके हमारे इतिहास-साहित्य की श्रीवृद्धि करेंगे । -एके० एन० दीख्षित न्यू देहल्ली सर्वाधिकारी २ जुलाई, १६३७ ई० ( भारत सरकारीय पुरातरव्र घिभाग )




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