सात निबन्ध | Saat Nibandh
श्रेणी : निबंध / Essay, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
35.61 MB
कुल पष्ठ :
94
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
परमानन्द श्रीवास्तव - Pramanand Shrivastav
No Information available about परमानन्द श्रीवास्तव - Pramanand Shrivastav
रघुवंश - Raghuvansh
No Information available about रघुवंश - Raghuvansh
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ / सात निबन्ध युग में लिखे गये--पर अधिसंख्य उदाहरणों में भारतेन्दु युग के निबन्घों की स्वच्छंदता भर लचीलेपन को छोड़कर । रामविलास शर्मा के अनुसार इस युग की सही पहचाव तभी हो सकी है जब हम एक तरफ भारतेन्ट युग से उसका सम्बन्ध पहचानें और दूसरी तरफ छायावादी युग से उसके सम्बन्ध पर ध्यान दें । ( महावी रप्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण पृष्ठ १५ ) छायावाद न केवल काव्यप्रवुत्ति की विशिष्ट संज्ञा हैं बल्कि उसमें एक युग की-सी संवेदनीयता मौजूद हैं । इसीलिए काव्येतर बिघाओं में भी छायावाद का वेशिष्ठय पाठक को आऊकृष्ट करता है । प्रसाद की कहानियों और नाटकों में छायावाद के तत्व साफ देखे जा सकते हैं । इसलिए छायावाद युग को हिन्दो- निबन्ध के विकास का तीसरा महत्वपूर्ण चरण स्वीकार करने में कठिनाई नहीं होनी चाहिये । दूसरों दृष्टि से रामचन्द्र शुक्ल के निबन्धों का रचना-समय जैसा पहले स्पष्ट किया गया है छायावाद-युग तक फैला हुआ है और उनके प्रौढ़ लेखन का समय भी यही है इसलिए उनके महत्व की स्वीकृति की दृष्टि से इस युग को शुक्ल युग कहना चाहें तो कह सकते हैं । हमारी दृष्टि में छायावाद की संवेदना से उसकी मूल अंतवंती चेतना से शुक्ल जी का कोई अनिवायं विरोध नहीं है। रागात्मक संवेदना और अनुभूतिमयी भाषा की जो पहचान शुव जी में विकसित हुई है उसके पीछे छायावाद की अपनी प्रेरणा है। शुक्ल जी की ऐतिंहासिक स्थिति को देखते हुए यह स्पष्टीकरण आवद्यक जान पड़ा । इस युग के महत्त्वपूर्ण निबन्घलेखक हूँ--जयशंकर प्रसाद माखतलाल चतुर्वेदी निराला प्रेमचन्द महादेवी वर्मा रघुवीर सिंह नन्ददुलारे वाजपेयी शांतिप्रिय द्विवेदी बेंचन दार्मा उग्र । प्रसाद के काव्य और कला जैसे निबन्धों में साहित्यिक विद्ठेषण की गंभीरता के साथ दार्शनिक बोध भी सौजूद है । माखनलाल चतुर्वेदी के निबन्धों का गद्य कविता की हुदों को छूता हैं। साहित्यदेवता चतुर्वेदी जी की उत्लेख्य कृति है । अमीर इरादे गरीब इरादे के निबन्धों में उनका प्रगतिशील दृष्टिकोण अधिक स्पष्ट हुआ है। निराला के निबन्धों में नाटक समस्या विद्यापति और चंडीदास कला के विरह में जोशी बन्घु साहित्यिक सन्निपात या वर्तमान धर्म कुछ महत्त्वपूर्ण निबन्घ हैं जिनमें उनकी तर्कक्षमता और चैचारिक दृढ़ता के साथ व्यक्तित्वचेतना भी दिखाई देती है। कुछ विचार में संकलित प्रेमचंद के निबन्व उनकी व्यापक जागरूकता और प्रगतिशील दृष्टि के उदाहरण हैं । महादेवी वर्मा के साहित्यकार की आस्था छायावाद यथार्थ . और आदर् जैसे निबन्धों में गहरी वैचारिकता के साथ कविस्वभाव की भावुकता और संवेदनीयता भी है। उनके संस्मरणात्मक निबन्धों और रेखाचित्रों में
User Reviews
No Reviews | Add Yours...