कुछ चन्दन की कुछ कपूर की | Kuch Chandan Ki Kuch Kapoor Ki
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
91.15 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ कबीर का योगदान : ४
तथा “सर्वखत्विदं ब्रह्म' के श्रौपनिषदिक श्रद्वतवाद एवं सर्वात्मवाद की
ध्रतुगूज है, इस्लामी एकेश्वरवाद को नहीं जिसके श्रनुसार परमात्मा एक
ट्ोकर भी सृष्टि से भिन्न है श्ौर बंदा खुदा से कभो श्रद्तता का. दावा नहीं
कर सकता 1
इस शभ्राध्यात्मिक एकत्व को वे विचार तक ही. सीमित नहीं रखते,
विवेकपूर्वक घामिक, सामाजिक, श्रार्धिक क्षेत्रों में व्यवहार के धरातल पर भो
उतारते हैं। यदि परमात्मा एक है तो वह समस्त संस्थाबद्ध घर्मों के श्राचार्यों
द्वारा भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा जाने पर भी एक ही है । इसी स्तर पर वे
“राम रहोम, केशव करीम, ब्रह्म अ्रल्लाह को एक ही घोषित करते हैं :
हमार राम रहींम करीमां कंसौ, ्रलह राम सति सोई।
बिसमिल मेटि बिसंभर एक श्र न दूजा कोई * ॥।
उनके लिए मन्दिर मस्जिद, काशी, काबा एक से ही हैं। “काबा फिर
कासी भया, राम भया रहीम * कहने में उन्हें कोई श्रनौचित्य नहीं दिखता
श्रतएव जब इनका नाम लेकर हिन्दू श्रौर मुसलमान (या श्रन्य धर्मावलम्बी)
एक दूसरे से कगड़ते हैं श्ौर श्रपने को श्रौरों से भिन्न मानते हैं तो कबीरदास
इन भ्रमजन्य भेदों पर विश्वास करने के कारण उन्हें भोंदू कहते हैं श्रौर चिताते
हूं कि वोलनेवाला जीवात्मा तो एक हो हैं, वह न हिन्द हैं, न तुर्क, फिर यह
संघर्ष क्यों ? उनकी अमभंजक वाणी है :
भरे भाई दोइ कहां सौ मोहिं बतावौ ।
बिचि हो भरम का भेद लगावौ ॥
जोनि उपाइ रची टै घरनीं, दीन एक बीच भई करतीं ॥
राम रहीम जपत सुधि गई, उनति माला, उनति तसबी लई ॥।
कहे कबीर चेतहु रे भौंदू, बोलन हारा तुरक न हिंदू ॥४ .
फिर थी जब संकीर्ख हृदयवाले हुठाग्रह्मी धर्माचार्य प्रभु के जीवों में मेल
को जगह बर के बीज बोते हैं, स्थूल बाह्याचारों की भिननता को ही प्रधानता
देकर भ्रन्तनिहित एकता की उपेक्षा करते हैं तो कबीरदास विक्ुब्ध स्वर में
कह उठते हैं, 'बजर परौ इुह मथुरा नगरी, कान्ह पियासा जाई रे ।' ४
यएणल्शएयएुस्य।शटकए उसककशललाण को
१. क० ग्र० पद ८ ॥
२. वही साखी ३१११० । भ
३. वही पद ५६ । न
४. तही पद ७६ ।
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