विश्व की कहानी 19 | Vishwa Ki Kahani 19
श्रेणी : विश्व / World
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
81.34 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कृष्ण वल्लभ द्विवेदी - Krishn Vallabh Dvivedi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand). दीप-शिखा. साधा-
किन्तु तुरही में फक
. मारने पर तुरही के
:: “ 'स्िललीवासले परदे में
_ नीची होकर कॉँपती
हुए. दपण में लो
का प्रतिबिम्ब भी
भौतिक विज्ञान
पिननफलललरएडएलटएपफएटटटपएालएपएएफएलएशलएएएएसरसएएएएएएएिएएएएएएएएएएएएएएशएसलटटकपशशटटिशएएएएसटशश शा एशएसश टी एएएएशएसए पट
प्रकार लटकाइए कि वह प्याले की कोर को छूती रहे।.
प्याले पर चोट करते ही गोली प्याले की कोर की कम्पन
के कारण दूर छुटक॑ जाती है |
सच तो यह है कि श्ाधनिक युग के वेज्ञानिंकों ने
ध्वनि-उत्पादकों के कम्पन को भी. स्पष्टतया 'दृष्टिगम्य
कराने में सफलता प्राप्त की है । इस प्रकार का संवग्रथम
प्रयास १८६२ सें लन्दन-प्रदर्शिनी में रुडल्फ़ कोनिंग ने
किया था । एक लम्बी तुरद्दी-सरीखे वाद्ययन्त्र 'झ” के दूसरे
छोर “ब' पर उसने फिल्ली का दलका परदा लगाया |
परदे की दूसरी तरफ़ गेस की लौ 'स* जल रही थी;
_. जिसमें नली 'द से गेस रा रही थी। सामने हो कुछ
दूरी पर एक चौपहल दपंण “च” रक््खा था, जिसे हाथ से
या विद्यत् द्वारा नचा
सकते थे । दपण जब
तेजी के साथ नाचता
था, उसमें गैस की
रणुतः समान ऊंचाई
की दीखती थी ।
कम्पन उत्पन्न होता
ी ३
तर तदनुसार गेस
की लौ भी ऊची-
थी। इस वक्त नाचते
सदर है, डे रॉ
ग कि | की
डर ०
केक पु सुकेकि- ध
£ >सपललेलुस रन ननछष «« के बउकजकेद७, की
मे ५! प्
2 सपफाफस
दन्दानेदार-सा कटा हा दिखलाई देता; जेसा कि चित्र
की निचली कोर पर परिवद्धित रूप में दर्शाया गया है
( दे० प्ृ० २१६४ का चित्र ) ।
_ कम्पन करनेवाले पदार्थ पर यदि कोई दलकी-सी
बुकनी फ़ेला दी जाय तो कम्पन के कारण यह बुकनी
विचित्र आ्राकृतियों के रूप में उस पदार्थ के घरातल पर
एकत्रित हो जाती है। काँच का एक चौकोर टुकड़ा लीजिए,
जो सध्यबिन्दु पर एक स्तम्म (5६870) में कसा हुश्ा
दो । इस पर समान रूप से पुष्प-पराग की बुकनी बिछा
दीजिए. । किन्तु बुकनी की तह बहुत मोटी न होने पाए ।
रब वेले की घन्वा की ताँत काँच की कोर पर रगड़िए
श्र साथ ही काँच के घरातल के किनारे के किसी बिन्दु
पर अपनी उगली
रख दीजिए । अप
तल पर एक विशेष
2
ही
्
थी
हल
ही
स्व
न
बेला की धघन्वा द्वारा उत्पन्न अद्सुत आकतियाँ जो “चेर्डनी की आऊकतियां' कहलाता डे
ये विभिन्न आाकृतियाँ स्तंभ पर टिकी हुई काँच या पीतल की थाली पर बारीक बुकनी बखेरकर थाली की कोर को
बेला की घन्वा से रगड़ने, साथ ही एक. दाथ की उंगलियों से उसे छुए रखने पर उस ुकनी में उत्पन्न की
फू _ ज्ञा सकती हैं ( देखो प्रष्ठ ९५१७१-२१७र का मेटर )।.......... ......
देखेंगे, पराग की
बुकनी काँच के घरा-
____... झाकृति बना लेती...
& #. है।काँच के घरातल
को भिन्न-भिन्न स्थान...
पर छूने से ऐसी ....
विभिन्न प्रकार की...
चित्राकृतियाँ .. बन
जाती हैं । इसका
कारण यह है कि
काँच का. टुकड़ा
जब कम्पन करता है.
तो. घरातल पर
विशेष रेखाओं में .
User Reviews
No Reviews | Add Yours...