वीर चूड़ामणि | Veer Chunamani

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Veer Chunamani by अखौरी कृष्णप्रकाश सिंह - Akhauri Krishna Prakash Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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िनिफप, «. 1 ये ना से निया देते हैं, उनके मार मतेका तूरते हैं और जिनके सयसे नि (. हट ) “मेरे शुर-साम्तों और सोसोदिये वीरा ! लड़ाईके समय कैसी वीरता दिखानी उखित है, शलूभोंसे कैसा व्यवहार चारमा चाहिये और संतध्रातमें राजपूतांका कया घर्म है, इन बालांकी शिक्षाकी कुछ आवश्यकता नडों, कपोंकि तुम इस दिया स्व पारस्त हा | हक “सेचाउग्दे राजपूत ! तुमने आजवव्य परान्ामक्‍ं व काम किये है । सशा अपने शलभोका शिर नवाले रहे हा और की पाते रहे है । बैसो ही कीसि आज भी अपने शलु्! रे कर 1 ैँ न का परास्त करके पाओ, इसीछिधये तुस्दे' यहाँ जुरूया है । “हम सागोंका चाहिये कि, जा हार मसुष्याधि। पीड़ा कि... थम न जाउक, छू, छिसान तथा व्यापारी छाग हाशकार मयासे हुए सखिताडमें अपनी दुम्ख-गाथा सुनाने आते हैं, उन्हें ऐसा घा सगाओ कि, थे फिर इसिर मे उठाधे ।” डर ये शब्द सुनते ही सम्पूण मेवाड़ी राजपूतसिंद गज उठे । सवल जय-जयकार का शब्द ने छगा । समरान्सुख सेनाफे वियार पू्चस यार विसाग करने यार दिशाओंधिं बार शिंये गये। सुख्य साग राणाजओीक साथ शलओंके सामने पा | दूसरा चूड़ाजीके साथ, तीसरा फुण्णसिंदके साथ, पी घवसिंद्के अधिकारमे चला | किसी स्थानपें पहाड़ियेनि शूर सीसादियांका सामना नहीं किया ; चठिक हुथ्ते-दुरते अपने मुख्य नगर दैराटगढसें जा प्य




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