शान्ति और सुख | Shanti Aur Sukh

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Shanti Aur Sukh by अखौरी कृष्णप्रकाश सिंह - Akhauri Krishna Prakash Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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2 4५००५ ४५३६ १११८९११०... १.११५.०११ १.५ ००.०५० ५.५.०५ ०५ ९१११११११ रा ৯ ৯ = श्रधिक सुखौ होता । पाठक जानते ३, कि इस ग्लानि का कारण क्वा डे › बुदिकौ अ्रपरिपक्षता हो इसका मूल कारण है। जिस विषयको वे भ्राज जानते §, यदि प्ले से जानते तो अमुक अरकर्तश्य भ्रौर श्रकरणोय कार्यको क्यों करते। , विद्वान धियोडर पाकर ( 1600018 एश}, जो अल्य वयसमें हो काल के कराल गाछमें पड गया, अपनो झत्य - शय्यापर बिलखता हो रहा कि, “मैंने क्यों कोई ऐसा उपदेश नहीं सुना अथवा ऐसो पुस्तक नहीं पठो, जिससे मुझे रहन- सहन और अध्ययनका पूरा त्ञान हो जाता ।” पाठक! ऐसा নিন্বান জব सुख-प्राप्तिकि नियमोके लिये बिलखता रहा , तो भला दूसरोंकी क्या गणना ? भ्रव तो पाठक इन नियमोकौ आवश्यकता समझ गये होगी । मनुष्यका घमं ३. कि सो डु उत्तम पदार्थ अपने पास हों दूसरे को अवश्य टेवै । पूवं समय मे, एथेन्समे, एकं कानून था, कि जो कोई किसी टूसरेको अपनी जलती बत्तौसे बत्ती जलानेसे रोकता, वह सार डाला जाता था। पाठक! इस परोपदेशका ण उपकार करनेवाले पर वदे माके का होता है। इतिहास-परिडित झूटा्चा ( प्राध्वणा ) अपने एक लेखमें कहता है कि, “बढ़े आदर्मियोंकी जोवनियाँ, पहले पहल, मैंने टूसरोंके उपकार के लिये हो लिखनो आर€्म वीं, परन्तु गये दिनोमें, में खयं हो उन जोवनियोसे लाभ उठाने लगा। वे मेरे प्रध्ययनकौ प्रधान विषय शरीर जौवन-




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