तमिल और उसका साहित्य | Tamil Aur Uska Sahitya

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क्षेमचंद्र 'सुमन'- Kshemchandra 'Suman'

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श्री पूर्ण सोमसुन्दरम - Shri Purn Somsundaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्धिकिय १६ न तंसिल श्रौर उसका साहित्य कवाटपुरम्‌ में स्थापित द्वितीय तमिछ संघ की रचनाओं में 'मुरुवल', 'शियन्दम?, श्रौर 'शेयिरियम” झादि नाटक-ग्रन्थों तथा 'पेरनारे? ; 'पिरु कुरशु?, 'इशेवुणुक्कम? तथा “ताठ्वगैयोत्त' झ्रादि संगीत-शाछों का भी उल्लेख बाद के अन्थों में पाया जाता है । परन्तु दुर्भाग्यवश झाज उनके केवल नाम ही शेष रह गए हैं | गेलकाप्पियसू--तोलकाष्पियर द्वारा रचित व्याकरण-ग्रन्थ ' तोख- काप्पियसू, पाणिनि के संस्कृत-व्याकरण की भाँति एक झद्धुत रचना है । यह न केवल श्रत्यन्त वैज्ञानिक ढंग से लिखित व्याकरण है, परन्तु तत्कालीन तमिछ्-समाज का प्रामाणिक चित्र भी प्रस्तुत करता है | कुछ विद्वान इसके सू्ों की आध्यात्मिक व्याख्या भी करते हैं । तोलकाप्पियर के बारे में यह दस्त-कथा प्रचलित है कि वह महर्षि... जमेदण्ति के पुर और परशुराम के माई थे । वह तमिछ के प्रथम व्यांकरणा- चाय झरगत्तियनार के शिष्य थे, यह प्रायः सभी विद्वान्‌ मानते हैं । न तोलकाष्पियर का व्याकरण तीन विभागों में बॉटा गया है-- (१)ऐछत्तदि- कारम्‌ ( अ्रक्षर-विभाग ), (२) शोल्लदिकारम्‌ ( शब्द-विभाग 9, तथा (हे) पोरठटिकारम्‌ (विषय-विभाग) । प्रत्येक “्रदिकारम” या 'विभागर में व्याकरण के नियम सूत्रों के रूप में दिये गए हैं। ये सूत्र इतनी सुस्पष्ट एवं सुलभी हुई भाषा में बहुत ही थोड़े-से शब्दों में रच गए हैं कि पढ़कर श्ाइचर्य होता है । यह इस बात का प्रमाण है कि तमिठ भाषा उस समय पूर्ण रूप से विकसित हो चुकी थी श्र उसमें साहित्यिक परम्पराएँ व शैलियाँ सुनिश्न्ित रूप से निधारित हो ज्लुकी थीं । 'तोलकाप्पियम्‌ के अक्षर-विभाग में प्रत्येक अक्षर की प्रयोग-विधि, ध्वनि: भेद तथा. विशेषताएँ विस्तृत रूप से बताई गई हैं | इसकी उल्लेखनीय विशेषता यह है कि स्वरों को “उपिरेछुत्तः ( प्राण-ऑ्रक्षर ) तथा व्यंजनों को मैय्येछु्त' (शरीर-झक्षर) बताया गया है। इन नामों का अर्थ-ाम्मी् सुस्पष्ट है | डर तोलकाप्पियर ने शब्दों को मुख्य रूप से इयल शोल ( मूल शब्द ), हा ही




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